For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह रहे हैं जब सभी तुम भी कहो..( ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

2122 2122 212

कह रहे हैं जब सभी तुम भी कहो
आँख मूँदो आम को इमली कहो

बोलते हो झूठ लेकिन एक दिन
आइने के सामने सच ही कहो

कौन रोकेगा तुम्हें कहने से अब
तुम ज़हीनों को भी सौदाई कहो

कैसे कहता कह न पाया आज तक

दोस्तों को जब कहो बैरी कहो

वो नहीं कहता है तू भी कह नहीं
जब कहे हाँ तुम भी तब हाँ जी कहो

वो बने हैं एक दूजे के लिए
दोस्तों उनको दिया बाती कहो

कह नहीं पाया मैं जब उसने कहा
जो भी कहना है तुम्हें जल्दी कहो

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on September 23, 2020 at 6:42pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिये ह्रदय तल से आभार. नया मतला कहने की कोशिश करता हूँ और दोनों अश'आर भी. सादर.

Comment by Samar kabeer on September 23, 2020 at 11:55am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'कल कहा था आज भी कल भी कहो
आम को हर बार ही इमली कहो'

मुझे मतले के दोनों मिसरों में रब्त नज़र नहीं आया,और ऊला में वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं लगा, 'कल भी कहो' 'कल भी कहना' सहीह होगा,लेकिन आपके रदीफ़ क़ाफ़िये का सवाल है, मतला दूसरा कहने का प्रयास करें ।

'हम ग़ुलामों की तरह पेश आएँगे

आप जिसको हुक्म की रानी कहो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ,देखियेगा ।

'ज़िंदगी बदलेगी रातों - रात फिर
मत कभी कहना नहीं हाँ जी कहो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,क्या कहना चाहते हैं ?

'दोस्तों उनको दीया बाती कहो'

इस मिसरे में 'दीया' को "दिया" कर लें, बह्र गड़बड़ हो रही है ।

Comment by सालिक गणवीर on September 19, 2020 at 8:46pm

भाई हर्ष महाजन जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभार.

Comment by Harash Mahajan on September 19, 2020 at 9:59am

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब । अच्छी पेशकश हेतु बधाई स्वीकार करें ।

सादर ।

Comment by सालिक गणवीर on September 18, 2020 at 10:10pm

भाई लक्षण धामी 'मुसाफ़िर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 18, 2020 at 10:08pm

आदरणीय निलेश शेगाँवकर साहेब

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत आभार .सही कहा आपने, ही की बजाय तुम  करुँ तो?

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2020 at 7:34pm

आ. सालिक गणवीर जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ नए आयाम भी हैं.. बधाई..
मतले के सानी में "ही" भर्ती का लग रहा है.. कुछ और कर सकें तो देखें..
थोडा बहुत फाइन ट्यून एक दो शेरोन में भी किया जाए तो ग़ज़ल और निखर उठेगी 
सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2020 at 6:46pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service