For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदलाव !

तड़के प्रात:

स्वच्छ धूप की नरम दूब से

मिलने की उत्सुक्ता ...

 

कुछ इसी तरह कोई लोग

कितनी उत्सुक्ता से अपने बनते

निज को समर्पित करते

भावनाएँ और समय देते हैं

भावनाएँ और समय लेते हैं

आदर देते हैं ... आदर लेते हैं

इस तरह कि जैसे यह सब सच में

रखता हो बहुत मान्य उनके लिए

या जैसे हो यह सब समीपता

हमेशा के लिए

 

समय की तीव्र धारा

अभी-अभी तो यहीं था ध्रुव तारा

कोई अज्ञात ज्वार था हर मिलन में

सही तो हो रहा था सब कुछ

खिला था मन का कोना-कोना

कोई आदत, कोई परम्परा हो जैसे

कभी इस कभी उस आत्मीय परिचय को 

हवाओं के रुख की तरह

समय के साथ

अक्सर बदलते देखा

 

कटी पतंग मानो

हवाओं के साथ मकानों के पार

उड़ती चली जाती है

और हम देखते रह जाते हैं देर तक

हाथ में टूटी डोर लिए

 

बहुत

बहुत दुखता रहता है मन

देर तक, चिरकाल तक

 

चली जाती है धूप

छिप जाता है सूरज कहीं दूर पर

गहन अपूर्णता का भान ...

बिखर-बिखर जाता है

बेसुध-सा मन

          --------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 22, 2020 at 5:44pm

मेरे प्रिय भाई समर कबीर जी,

आपकी ख़ैरियत  के लिए प्रार्थना जारी रहेगी। 

Comment by Samar kabeer on August 22, 2020 at 11:33am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, मेरी हालत भी आपके जैसी ही रही पिछले दिनों, अभी लम्बी ग़ैर हाज़िरी के बाद ओबीओ पर आया हूँ, अपना ध्यान रखें और ख़ैरियत से आगाह करते रहें, मैं आपके लिए दुआ गो हूँ ।

Comment by vijay nikore on August 22, 2020 at 10:14am

प्रिय मित्र लक्ष्मण धामी जी, 

इस रचना को मान देने के लिए हृदयतल से आभार। उत्तर देने में बहुत विलम्ब के क्षमाप्रार्थी हूँ।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 22, 2020 at 10:10am

अज़ीज़ समर कबीर जी, आदाब।

आपके कुशल की प्रार्थना लिए मैं आज बहुत समय के बाद ओ बी ओ पर आया हूँ। आठ साल से ओ बी ओ पर सदस्यता के अन्तर्गत

पहले तो कभी ऐसा न हुआ कि इतने समय तक न आऊँ। कुछ health issues के कारण न आया। भगवान जी की मेहरबानी से अब ठीक हूँ।आपने मेरी रचना को सराहा, मान दिया, इसके लिए हृदयतल से आभारी हूँ। विलम्ब के लिए माफ़ी मांगता हूँ, मेरे भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2020 at 11:13am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 15, 2020 at 7:56pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक अच्छी रचना से मंच को नवाज़ा है,आपने, इस उम्द: प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

अपनी ख़ैरियत से आगाह करते रहें,मुझे आपकी बहुत चिंता रहती है,अल्लाह आपको ख़ैरियत से रखे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
". तू है तो तेरा जलवा दिखाने के लिए आ नफ़रत को ख़ुदाया! तू मिटाने के लिए आ. . ज़ुल्मत ने किया घर तेरे…"
13 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. लक्ष्मण जी,मतला भरपूर हुआ है .. जिसके लिए बधाई.अन्य शेर थोडा बहुत पुनरीक्षण मांग रहे…"
54 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. आज़ी तमाम भाई,मतला जैसा आ. तिलकराज सर ने बताया, हो नहीं पाया है. आपको इसे पुन: कहने का प्रयास…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
9 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service