For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2212/ 1211/ 2212/ 12 

चेहरा छुपा  लिया है सभी  ने नका़ब  में, 

परदा नशीं बने  हैं सभी  इस अ़ज़ाब में।

आक़ा  हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द  हैं, 

अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।

फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,

सब लोग मुब्तिला  हैं  इसी इज़्तिराब में।

करता  रहा  ग़रूर सदा जिस  ग़िना पे  तू , 

क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।

क्या ये अ़ज़ाब है या कोई  इम्तिहान है ?, 

ये  बेकली  सी  क्यूं  है दिले तंग-ताब में।

पहचान भी न होती है अब तो लिबास से, 

कैसे  करोगे   साहिबो  इस  इंक़लाब  में।

पर्दे के थे ख़िलाफ़ जो कल तक 'अमीर' वो,

कोविड के डर से आज हैं लिपटे हिजाब में। 

" मौलिक व अप्रकाशित " 

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 11, 2020 at 2:53pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, आदाब। ख़ाक़सार की ग़ज़ल पर आपकी आमद से दिली मसर्रत हासिल हुई, और चाहता हूँ ये हमेशा होती रहे। आपसे इल्तिजा है कि मुझ से गुफ़्तगू करते वक़्त जसारत जैसे लफ़्ज़ इस्तेमाल कर मुझे शर्मिंदा न किया करें। मेरी इस्लाह करने वाले सभी दोस्त और उस्ताद ए मुहतरम मेरे मोहसिन हैं, और मेरे लिये आप सभी का मक़ाम सर-बुलन्द रहेगा। मज़ीद ये कि मेरी इस तख़्लीक़ पर हौसला अफ़ज़ाई और इस्लाह के लिये मैं आपका न सिर्फ शुक्र-गुज़ार हूँ बल्कि आपके ज़्यादातर सुझावों से सहमत हूँ और जल्द ही सुधार करने का प्रयास करूँगा। सादर। 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 10:59am

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, ग़ालिब साहिब की ज़मीन में इस लाजवाब ग़ज़ल पर दाद और बधाई स्वीकार करें। आपके अशआर दौर-ए-हाज़िर की हक़ीक़त बयान कर रहे हैं। आदरणीय, अगर आप बह्र लिख दें तो सीखने वालों को आसानी होगी। कुछ छोटे छोटे सुझाव देने की जसारत कर रहा हूँ:

/आक़ा हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द हैं, 

हाँ घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में/
इस शे'र के सानी में 'हाँ' के स्थान पर 'अब' या 'यूँ' इस्तेमाल करने पर सोचा जा सकता है।

/फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,

सौ ज़ख़्म खा रहे  हैं  सभी इज़्तिराब में/
मिस्रों में रब्त बढ़ाने के लिए सानी को कुछ यूँ कहने पे सोच सकते हैं:
2212 / 1211 / 2212 / 12
सब लोग मुब्तिला हैं इसी इज़्तिराब में

/करता  रहा ग़रूर सदा जिस  ग़िना पे  तू , 

क़ुदरत न आज कुछ है तेरे इस निसाब में/
इस शे'र के सानी मिस्रे का शिल्प इस तरह सुधारा जा सकता है, अगर इससे भाव नहीं बदल रहा तो:
क़ुदरत नहीं है आज तेरे इस निसाब में

/पहचान भी न होती है अब तो लिबास से
कैसे   करेंगे   साहिब   इस  इंक़लाब  में/
इस शेर के सानी में 'साहिब' के स्थान पर 'साहिबो' कहने से ये बह्र में आ जाएगा।

मक़्ता लाजवाब है! सादर

 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 10, 2020 at 2:59pm

जनाब रूपम कुमार जी, आपकी टिप्पणी देख नहीं पाया था, इसका खेद है। 

ग़ज़ल पर आपकी पहुंच और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिय:।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 22, 2020 at 11:13am

मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह जी, आदाब।

नाचीज़ की ग़ज़ल पर हाज़िरी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए 

तहे-दिल से शुक्रिया। 

Comment by TEJ VEER SINGH on April 21, 2020 at 5:51pm

हार्दिक बधाई आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " जी। बेहतरीन गज़ल।

करता  रहा ग़रूर सदा जिस  ग़िना पे  तू , 

क़ुदरत न आज कुछ है तेरे इस निसाब में।

पर्दे के थे ख़िलाफ़ जो कल तक 'अमीर' वो,

कोविड के डर से आज हैं लिपटे हिजाब में। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service