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देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक(९८ )

(221 1221 1221 122 )

.

देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक
ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक
**
ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो
अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक
**
कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको
हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक
**
दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमत
बिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक
**
करना है ख़ता रब तो हर इंसान की फ़ितरत
करना तू ख़ुदा माफ़ नदामत के मुताबिक
**
काहिलपने की आप चुकाएँगे ही क़ीमत
ग़फ़लत की सज़ा मिलती है ग़फ़लत के मुताबिक
**
रुसवाई मिले दोस्त गुनाहों की वज़ह से
ख़ुशनाम कोई होगा शराफ़त के मुताबिक
**
आसान सदा होगी रह-ए-ज़ीस्त हमारी
ढल जाएँ अगर ग़ैर की फ़ितरत के मुताबिक
**
सच बात 'तुरंत' आपको है कहनी अगर तो
दिल खोल कहें रोज़ की आदत के मुताबिक
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 12, 2020 at 3:38pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 3:02pm

आ. भाई गरधारी सिंहजी, सादर अभिवादन । गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । साथ ही चर्चा से सीखने को भी मिला । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 11, 2020 at 11:26am

//दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमतबिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक.      इस शैर के ऊला की तक्तीअ पर नज़रे सानी कर लें। //

इस मिसरे में अलिफ़ वस्ल किया गया है,तक़ती'अ ठीक है ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 10, 2020 at 10:12pm

भाई सालिक गणवीर  जी , आदाब | आपकी हौसला आफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 10, 2020 at 9:47pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर "  साहेब  ,आपकी हौसला आफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया |  दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमत --- इस शेर में कथ्य तो यही है , दुनिया में हर चीज़ की एक तय क़ीमत है , लेकिन आदमी की क़ीमत तय नहीं है ,भाव यही है उसे मज़दूरी ठीक से नहीं मिलती | ( इसे यूँ  कर सकते  है क्या ? बस आदमी बिकता नहीं क़ीमत के मुताबिक | लफ्ज़ काहिली है। लेकिन बह्र में काहिलपना ही आ रहा है , मैंने यही अंदाज़ा लगाया कि जाहिलपन हो सकता है कमीनापन हो सकता तो काहिलपन भी होता होगा | बदनाम का विलोम ख़ुशनाम या नेकनाम हो सकता है | मैंने किसी शायर के कलाम में ही पढ़ा था | एक उदाहरण -

ये हक़ीक़त है कि दोनों फ़ितरतन मा'सूम हैं

पाक-दामन हुस्न भी है इश्क़ भी ख़ुश-नाम है ---सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी    

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 10, 2020 at 9:02pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी 'तुरंत '  आदाब । ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें। आदरणीय उस्ताद ए मुहतरम समर कबीर जी की बातों का संज्ञान लें।

दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमतबिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक.      इस शैर के ऊला की तक्तीअ पर नज़रे सानी कर लें। इसके इलावा आपका ध्यानाकर्षण चाहूँगा कि शैर के सानी  मिसरे और ऊला में कही गयी बातों में विरोधाभास है, क्योंकि..... दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमत. शय यानि वस्तु (बेजान चीज़ें) जबकि... बिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक.  आदमी यानि जानदार (वस्तु नहीं) आदरणीय, काहिलपने की आप चुकाएँगे ही क़ीमत सही लफ़्ज़ 'काहिली' है। और

 ख़ुशनाम कोई होगा शराफ़त के मुताबिक'.  "ख़ुशनाम" ये लफ़्ज़ कहीं भी दरियाफ़्त नहीं है। आपने कहाँ से लिया है और किस ज़िम्न में लिया है बराहे करम बताने की ज़हमत करें। आशा है संज्ञान लेंगे। सादर। 

Comment by सालिक गणवीर on May 10, 2020 at 4:12pm

आदरणीय गहलोत जी

एक और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयां स्वीकारें.

ढल जाएँ अगर ग़ैर की फ़ितरत के मुताबिक... वाह

इस मिसरे में सच्चाई बयान कर दी आपने.

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 6:45pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें| 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 9, 2020 at 5:43pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी  जी। बेहतरीन गज़ल।

दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमत
बिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक

काहिलपने की आप चुकाएँगे ही क़ीमत
ग़फ़लत की सज़ा मिलती है ग़फ़लत के मुताबिक

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 3:33pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , 

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें| आपकी इस्लाह  और मार्गदर्शन से मुझे बहुत लाभ हुआ है | इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें |

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