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गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का(८८ )

( 212 1212 1212 1212 )

गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का

है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का

**

जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा

इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का

**

हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार

इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का

**

बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से

क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का

**

सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर

देखना पड़े न रुख़ हमें किसी अज़ाब का

**

इख़्तियार आपका है खू-ए-मय पे लाज़िमी

तिश्नगी की हद बढ़े तो जुर्म क्या शराब का

**

ज़िंदगी का कारवाँ बशर रुके न जूँ कभी

ख़ौफ़-ए-अब्र से रुके सफ़र न आफ़ताब का

**

तार छिन्न भिन्न हों कि हों नहीं कसे हुए

बेसुरा बजे अगर तो दोष क्या रबाब का

**

छोड़ कर रह-ए-गुनाह ख़ूबतर मिला सुकूँ

है गुमान आज भी 'तुरंत ' इस निसाब का

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

शब्दार्थ -इ'ताब =प्रकोप , बाब =अनुच्छेद ,

अज़ाब=यातना , खू-ए-मय=शराब पीने की आदत ,

लाज़िमी=ज़रूरी , निसाब=पूंजी, सरमाया

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 3:43pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर साहेब , खाकसार का कलाम पसन्द करने और हौसला आफजाई का बेहद शुक्रिया | सबसे पहले तो आपसे निवेदन है कि मेरी रचना पर कमेंट करते समय माज़िरत लफ्ज़ का प्रयोग न करें |  

  हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार    और

मिसरा        सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर   बह्र में नहीं हैं। ( मेरी समझ में तो बह्र में ही है ,कृपया तक़्तीअ करके बताएं कहाँ गड़बड़ है , अगर समय हो तो ? 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 22, 2020 at 3:11pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत जी, आदाब।

अच्छी ग़ज़ल कही है आपने, बधाई स्वीकार करें।

शेअ'र         इख़्तियार आपका है खू-ए-मय पे लाज़िमी

                 तिश्नगी की हद बढ़े तो जुर्म क्या शराब का.      लाजवाब है। 

मआ़ज़रत के साथ कहना है कि... 

मिसरा        हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार    और

मिसरा        सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर   बह्र में नहीं हैं। देखियेगा। सादर। 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 21, 2020 at 5:54pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , रचना पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन के लिए आभार 

Comment by TEJ VEER SINGH on April 21, 2020 at 5:49pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी। बेहतरीन गज़ल।

सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर

देखना पड़े न रुख़ हमें किसी अज़ाब का

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