For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था // दिनेश कुमार

221 - - 2121 - - 1221 - - 212

तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था
सब कुछ था मेरे पास मगर मैं उदास था

जीवन के मयकदे में कुछ हालत थी यूँ मेरी
होंठों पे प्यास हाथ में खाली गिलास था

हर आदमी के ज़ेह्न में रक़्साँ थी बेकली
दुनियावी ख़्वाहिशात का हर कोई दास था

आह्वान बंद का था सियासत के नाम पर
होगा नहीं वबाल फ़क़त इक क़यास था

भगवे हरे में बँट गया फिर शह्रे-दुश्मनी
चारों तरफ़ इक आलमे-ख़ौफ़ो-हिरास था

तूफ़ाँ में रात जिसका सफ़ीना बचा नहीं
कहते हैं नाख़ुदा वो समन्दर-शनास था

मरकज़ था हर निगाह का महफ़िल में वो 'दिनेश'
हैरत नहीं जो उसका चमकता लिबास था

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 6:43pm

जनाब दिनेश कुमार साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 11, 2018 at 3:34pm

बहुत खूब...

Comment by Neelam Upadhyaya on April 10, 2018 at 11:33am

आदरणीय दिनेश जी, बहुत ही उम्दा । बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 10, 2018 at 10:38am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2018 at 8:50pm

वाह क्या कहने आदरणीय दिनेश जी..बेहतरीन ग़ज़ल..

Comment by Ajay Tiwari on April 9, 2018 at 6:36pm

आदरणीय दिनेश जी,

तूफ़ाँ में रात जिसका सफ़ीना बचा नहीं
कहते हैं नाख़ुदा वो समन्दर-शनास था       बहुत खूब !

उम्दा ग़ज़ल हुई..हार्दिक बधाई.

Comment by दिनेश कुमार on April 9, 2018 at 6:24pm

शुक्रिया आ. बसंत जी। आभार।

Comment by दिनेश कुमार on April 9, 2018 at 6:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी, हौसला अफ़ज़ाई के लिए।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 9, 2018 at 1:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीय दिनेश कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

आह्वान बंद का था सियासत के नाम पर
होगा नहीं वबाल फ़क़त इक क़यास था

भगवे हरे में बँट गया फिर शह्रे-दुश्मनी
चारों तरफ़ इक आलमे-ख़ौफ़ो-हिरास था

Comment by Samar kabeer on April 9, 2018 at 11:19am

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
18 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service