For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "ऐसे भी माहौल बनाया जाता है"

22 22 22 22 22 2


रिश्ता जो इक बार बनाया जाता है।
वो फिर सारी उम्र निभाया जाता है।।

ऐसे भी माहौल बनाया जाता है।
कुछ होता कुछ और दिखाया जाता है।।

ऐसा देखा यार सियासत में अक्सर।
इक दूजे को चोर बताया जाता है।।

सच हो पाए जो न किसी भी सूरत में।
क्यों अक्सर वो ख़्वाब दिखाया जाता है।।

 रंग बदलते गिरगिट सा कुछ लोग यहाँ।
मतलब हो तो प्यार जताया जाता है।।

ये सच्चाई तो जग जाहिर है यारो।
जो सच बोले खूब सताया जाता है।।

जो औरों के सुख दुख को अपना समझे।
वो अच्छा 'इंसान' बताया जाता है।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on January 24, 2018 at 9:52am

आदरणीय अजय साहब आदाब। हौसला अफजाई और मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on January 24, 2018 at 9:50am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई जी नमन। हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

Comment by surender insan on January 24, 2018 at 9:49am

आदरणीय समर कबीर साहब आदाब। हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी आपका।

Comment by Ajay Tiwari on January 16, 2018 at 5:11pm

आदरणीय कालीपद जी,

फइलुन(112) का प्रयोग मुतकारिब को छोड़ कर अन्य ज्यादातर बहरों में होता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रयोग मुतदारिक में होता है मिसाल के लिए : 

 ख़ुदा ही मिला  विसाल-ए-सनम  इधर के हुए  उधर के हुए

रहे दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम  इधर के हुए  उधर के हुए 

                                                            

                                                 - मुंशी घनश्याम लाल आसी

121 के प्रयोग से आपकी मुराद संभवतः बहरे-मीर में इसके प्रयोग से है इसके लिए मीर का ये शेर देखा जा सकता है :

काफ़िर मुस्लिम, दोनों हुए, पर निस्बत उससे कुछ न हुई

बहुत लिए तस्बीह फिरे हम, पहना है जुन्नार बहुत

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2018 at 7:12am

हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 5:45am
आद0 सुरेन्दर इंसान जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई
Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 14, 2018 at 8:40pm

आ अजय तिवारी जी ,नमन , फैलुन( २२ ) का २११ का प्रयोग तो समझमे आगया , कृपया २२ का ११२ या १२१ के रूप में कहाँ प्रयोग होता है एल उदाहरण दे\ सादर 

Comment by Ajay Tiwari on January 14, 2018 at 6:15pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, सादर नमन,

फेलुन(22) को 211 और 112 दोनों वजनों पर एक साथ किसी बह्र में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. फेलुन(22) का  211 के वजन पर सिर्फ मुतकारिब में ही इस्तेमाल होता है.(211 वस्तुत: सिर्फ एक गणितीय प्रारूप है वास्तविक तक्ती मुतकारिब के अर्कानों में होती है). आप द्वारा इस्तेमाल की गयी बह्र मुतकारिब का आहंग है और मुतकारिब में फइलुन (112) का इस्तेमाल संभव नहीं है.

सादर 

Comment by Samar kabeer on January 14, 2018 at 12:19pm

जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अजय तिवारी जी सब कुछ बता चुके हैं,उनकी बातों का संज्ञान लें ।

Comment by surender insan on January 13, 2018 at 10:08pm

आद. अजय जी सादर नमन जी। ग़ज़ल  को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार जी। 

इस बह्र में  22 को 211 या 112 तो किया जा सकता है। 22 को  121 करने की मनाही बारे तो सुना है या पहले फेलुन को 112 न करने बारे भी सुना है जी। 

सादर जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service