For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजक

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

-- डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:16pm

एक से बढ़ के एक 

बधाई सर जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:03am

आदरणीय बाली जी

                   बेहतरीन गजाल पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:32am

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥.....अंदाज़ देखिये

कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥..sateek

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

                           डॉ. सूर्या बाली “सूरज”Sir ...kya roushani dikhai hai

 

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:30am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल(aaj tak)....Salman khursheed.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 10:49am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥---------------दूसरो को उपदेश देना बहुत आसन होता है 

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥------पता नहीं नीर समझते हैं या क्षीर 

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके, 
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥------ओवर कान्फिडेंस 

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥----अपनों का किया घायल अधमरा जो हो जाता है 

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी 
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥-----यही होता है सब कुछ भूल जाते हैं 

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥------हहाहाहा--कटाक्ष !!!

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥------चापलूसों से बचना ही चाहिए 

वाह क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है काफी दिन बाद लिखी है आपने बहुत उम्दा दाद कबूल करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 10:09am

दिल झूम उठा, डॉक्टर साहब !

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

ये वो मतला है जो मसल हो जाता है. बहुत खूब !

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

उपरोक्त अश’आर बार-बार पढ़ रहा हूँ और बार-बार दाद कह रह हूँ. आपकी लगन ऐसी है कि आपकी मसरुफ़ियत झुक कर सलाम करे.

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:38am

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

बहुत बढ़िया.......

Comment by satish mapatpuri on October 16, 2012 at 12:10am

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

इस अदा पर कुर्बान जाऊं ..... स्तरीय कटाक्ष ....... बेहतरीन कहन .... मज़ा आ गया डॉ . बाली साहेब .... लख -लख मुबारका

Comment by वीनस केसरी on October 15, 2012 at 11:14pm

बहुत खूब डॉ साहब उम्दा शेर हुए हैं
बहरो रदीफो कवाफी इतने तंग हैं और उस पर भी क्या लाजवाब अशआर निकाले आपने
वाह वाह वा
ढेरो दाद कबूल करें

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:43pm

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद ..........वो आजकल॥ best of lines

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद .......वो आजकल॥ really good

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service