ऐ ख़ुदा  दिल को  क्या  हुआ  है ये 
 किसकी  चाहत  में खो  गया  है ये
पेट  में   तितलियाँ   सी  उड़ती  हैं
 इश्क़  की  क्या  ही  इब्तिदा  है  ये
याद-ए-जानाँ  तो  है दवा  है  गोया
 दिल-ए-मुज़्तर  का  आसरा   है  ये
कौन  सुन  पायेगा   मेरे   दिल  की
 दिल-ए-सोज़ाँ   तो   बे-सदा   है  ये
सोज़-ए-दिल से हुआ है दिल बेकल 
 सद्र   से   फिर  धुआँ   उठा   है  ये
फिर   तेरे   शौक़िया   निशाने   पर
 दिल  मेरा   हाय !  आ  गया  है  ये
अब तो रहने दो बस करो न 'अमीर' 
 भूत    कैसा    तुम्हें   चढ़ा    है   ये
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
वाह बहुतख़ूब बहुतख़ूब आदरणीय... बधाई
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है।हार्दिक बधाई।
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।
पेट में तितलियाँ सी उड़ती हैं
इश्क़ की क्या ही इब्तिदा है ये..........वाह ! बहुत खूब.
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. बहुत-बहुत मुबारकबाद क़ुबूलें. सादर
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