For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे......(ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे
कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)

मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी
था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)

मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ
दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)

अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था
बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)

देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का
हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे (5)

वो जानते हैं जिस्म मेरा भी है काग़ज़ी
पर आग से हमेशा गुज़ारा गया मुझे (6)

अहबाब ऐसे हैं तो कमी क्यों अदू की हो
करते हैं याद सबको बिसारा गया मुझे (7)

वो चाहते थे देखना मुझको डरा हुआ
जब डूबने लगा तो उभारा गया मुझे (8)

*मौलिक व अप्रकाशित

Views: 735

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on April 21, 2021 at 3:54pm

आदरणीय भाई ब्रजेश कुमार जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by सालिक गणवीर on April 21, 2021 at 3:51pm

आदरणीय भाई बसंत कुमार शर्मा जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by सालिक गणवीर on April 21, 2021 at 3:49pm

आदरणीय भाई आजी तमाम जी

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2021 at 12:43pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by Aazi Tamaam on April 16, 2021 at 3:21pm

सहृदय बधाई स्वीकारें आदरणीय गनवीर जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2021 at 9:02am

क्या कहने वाह बेहतरीन ग़ज़ल हुई आदरणीय...हरिक शे'र लाजबाब

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 5:51pm

जी, उला मिसरा में होती लग रही है..

Comment by सालिक गणवीर on April 7, 2021 at 5:32pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हृदय से आभार. आप सहीह कह रहे हैं हमेशा की बजाय "सदा ही" लिखना उचित होगा।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 5:24pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई । मुझे छटे शेर में लय बाधित होती लग रही है । देखिएगा । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service