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मुझे आज तुमसे कुछ कहना है

प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...

जानता है उल्लसित मन, मानता है मन

तुम बहुत, बहुत प्यार करती हो मुझसे

गोधूली-संध्या समय तुम्हारा अक्सर चले आना, 

गलें में बाहें, गालों पर चुम्बन, अपनत्व जताना

झंकृत हो उठता है मधुरतम पुरस्कृत मन-प्राण

मैं बैठा सोचता, सपने में भी कोई इतना अपना

आत्म-मंदिर में अपरिसीम मधुर संगीत बना

निज का साक्षात प्रतिबिम्ब बन सकता है कैसे

पलता है मेरी आँखों में प्रिय, यह प्यार तुम्हारा

फिर भी प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...

कभी दिनों-दिनों तक तुम्हारा अचानक दूर हो जाना

याद दिलाता है मुझको .. हर क्षण की क्षण-भंगुरता

आ जाता है एकाकीपन, कुछ गीलापन भी मन में

डगमगाता आत्म-विश्वास, लघु हो जाता है मेरा संसार

तीव्रतम संघर्ष भीतर, अनाश्रित-सी दयनीय दशा 

चढ़ जाता है मानो मेरी आत्मा पर भी कोई बुखार

ठेल देता हूँ मन से मैं असंतोष का भार हर बार

दे देता हूँ नाम इसे तुम्हारी "मजबूरी" का

पर यह भी सच है प्रिय कि ऐसे में मेरे भीतर

कुछ है जो टुकड़े-टुकड़े होकर बँट जाता है

मन करता है पूछ लूँ तुमसे चाहे कुछ डरते-डरते

यह जिसको मैंने नाम दिया है तुम्हारी मजबूरी का

यह वास्तव में तुम्हारी मानवीय मजबूरी है क्या ? 

या, कह दो थक गई हो तुम प्यार का पथ चलते-चलते

सोच में असामान्य बिखराव की भयानक उलझन

हृदय में छिपाए अजीब-सी कष्ट-ग्रस्त धकधक

दीवार पर टंगी कोई गहरी आत्मीय पहचान ...

तुम्हारी तस्वीर को टाँगते, उतारते, टाँगते

भीतर मि्ट्टी के ढेले-सा कुछ अँश-अँश हो जाता है

इसीलिए प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है

दु:स्वप्न के आवेश से घबराया सोचता रहता हूँ मैं

कहीं ऐसा न हो कि इक दिन तुम न आओ लौट कर

और हृदय में उमड़ रहे स्नेह के समुद्र को संभालते

मैं बैठा ठगता रहूँ शेष जीवन भर अंत तक मन को

कि यह भी शायद कोई तुम्हारी मजबूरी ही होगी

प्रिय, क्षमाप्रार्थी हूँ, शायद तुम्हारे दिल को दुखाया

निर्जीव पत्तों में भी छटपटाहट तो होती है

जानती हो न छटपटाहट में सोचना मेरी आदत है

दोष मेरा है, तुम्हारा कहीं कोई दोष नहीं है

जानता हूँ प्रिय, बहुत प्यार करती हो तुम मुझसे

मन न माना, मन को कब से यह तुमसे कहना था

                     ---------

                    

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on March 1, 2020 at 8:02pm

आपका हार्दिक आभार मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2020 at 1:54pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है , हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on March 1, 2020 at 12:55pm

आपका हार्दिक आभार मेरे भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on February 28, 2020 at 11:37am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, बहुत अच्छी रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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