For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212 

जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ

ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के  साथ

-  

नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ 

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

-  

आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे

कुछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ

-  

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में

यूँ ही नहीं है प्यार हमें  शायरी के साथ 

-  

अच्छी तरह से आपने जाना नहीं जिसे

यारी कभी न कीजिये उस अजनबी के साथ

-  

मुश्किल में कैसे जीते हैं यह उनसे पूछिये

गुज़रा है जिनका वक़्त सदा मुफ़लिसी के साथ

-  

उसपर न ऐतबार  कभी कीजिए  " रज़ा 

धोका किया है जिसने हमेशा सभी के साथ

-----------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:32pm
जनाब तस्दीक साहब,
ग़ज़ल पर आपकी नज़रे इनायत और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:31pm
आ. तेजवीर सिंह जी,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 9:46pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by नादिर ख़ान on February 4, 2018 at 6:49pm

खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद , जनाब सलीम रज़ा साहब ....

Comment by रक्षिता सिंह on February 4, 2018 at 4:59pm

आदरणीय सलीम जी, बहुत ही उम्दा गजल।

बहुत  बहुत मुबारकबाद।।

Comment by Mohammed Arif on February 4, 2018 at 3:44pm

आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,

                             सबकुछ समा दिया इस ग़ज़ल में आपने । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जैसे कूछ/कुछ, जिदगी/ ज़िंदगी , मुश्किल/ मुश्क़िल । बाक़ी बेहतरीन ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 4, 2018 at 1:49pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
शेर4 और शेर7 के सानी मिसरे को यूँ करके देखिएगा , शेर की सुंदरता बढ़ जाएगी
" यूँ ही नहीं लगाव हमें शायरी के साथ " | "करता है जो फरेब हर इक आदमी के साथ "

Comment by TEJ VEER SINGH on February 4, 2018 at 1:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहब जी। बेहतरीन गज़ल।

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में

यूँ ही नहीं है  प्यार हमें  शायरी के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service