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महब्बत की राहों में जाने से पहले.
ज़रा  सोचिए  दिल  लगाने से पहले.
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 बहारों का इक शामियाना  बना  दो.
 ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.
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 गिरेबान में  झांक  कर अपने देखो.
 किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.
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 ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.
 ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.
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 कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.
 महब्बत  की  बस्ती  जलाने से पहले.
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सलीम साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं .
सादर
आदरणीय काली प्रसाद जी ,
आपकी मुहब्बत सलामत रहे बहुत बहुत शुक्रिया ,
आ सलीम साहब बहुत उम्दा ग़ज़ल , बधाई |
आ. सलीम साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
मतले में शमअ का वज़'न ग़लत ले लिया है आपने  शायद..
अन्य शेर में शामियाना कर लें 
सादर  
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