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बात गज़ब की करते हो -- डॉo विजय शंकर

हालात बदलने की बात करते हो
आदमी बदल देते हो
हालात बदल नहीं पाते ,
या बदलना नहीं चाहते हो।
खुद को तरक्की पसंद कहते हो
तरक्की की बात करते हो
काम करने के पुराने तरीके
नहीं बदलते हो ,
आदमी बदल देते हो ।
उसने बहुत सहा , अब तुम सहो ,
इसी को सामाजिक न्याय कहते हो ,
गज़ब करते हो बिना हींग फिटकरी के
रंग चोखा करते हो ॥
तरक्की की बात करते हो
खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥
अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं
पर बात गज़ब की करते हो ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 13, 2018 at 12:07am

बेहतरीन मार्गदर्शन/हिदायतें... कटाक्ष। हार्दिक बधाइयां आदरणीय डॉ. विजय शंकर साहिब।

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 1:45am
आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय नीरज कुमार जी , सादर।
Comment by Neeraj Neer on April 11, 2015 at 10:43am

बहुत ही सुंदर विचारपूर्ण रचना ॥ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 10, 2015 at 8:46pm
प्रिय जीतेन्द्र जी , सुन्दर प्रशस्ति के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 10, 2015 at 8:45pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2015 at 8:09pm

जितनी छोटी ,उतनी ही प्रभावी रचना.  यह भी तो सच है सर,  कि हालात बदलने वाले को ही बदल दिया जाता है. प्रस्तुति पर बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 4:01pm

आदरणीय विजय सर ..इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 7:58pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी, रचना की प्रशस्ति के लिए आभार एवं बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 9, 2015 at 7:48pm

सुंदर रचना आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 6:11pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी, रचना की प्रशस्ति के लिए आभार एवं बधाई हेतु धन्यवाद, सादर।

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