For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सफाई (लघुकथा) : डॉo विजय शंकर

दावत जोरदार रही , सब ने छक के खाया, खाना था ही इतना बढ़िया , तिस पर बिठा कर पत्तल पर प्रेम से परोस-परोस कर खिलाया गया था। अब कहाँ होतीं हैं ऐसी दावतें। देर रात तक नौकरों ने सारे पत्तल इकठ्ठा करके पास तिराहे के कोने पर, जहां लोग कूड़ा फेंकते थे , फेंक दिये। लोग रात देर तक टहल टहल कर बतियाते रहे , दावत की तारीफ करते रहे। सब कुछ अच्छा था पर किसी एक-दो को अच्छा नहीं लगा। किसी ने सुबह-सुबह इधर-उधर दो एक फोन कर दिये । साढ़े दस तक एक बाबू साहब एक डायरी लेकर आ गए। उन्हें बुलवाया , कहा , अच्छी दावत की , पत्तलों की ओर इशारा करके बोले , ये हमारे लिये छोड़ दिया। पत्तलों का ढेर लगा था, प्लास्टिक के गिलास , प्लास्टिक बीनने वाले बीन ले गए थे। उन्होंने अपनी बात रखी , अब कूड़ा तो सब लोग यहीं डालते हैं। बाबू जी लगातार डायरी भर रहे थे , बोले , कूड़ा डालते हैं पर इतना ढेर सारा नहीं। सफाई की जिम्मेदारी तो हमारी है , न।


उन्होंने जेब से चुपचाप एक हरा नोट निकला , बढ़ा दिया। बाबू जी ने डायरी में लिखा काट दिया , बोले चिंता मत करियेगा , हम कौन सा आ रहे थे , आप ही के पड़ोसी लोग हैं फोन कर कर.…… , जाने दीजिये , किसी को क्या कहना , सफाई तो हो ही जाएगी .

 
वो धीरे-धीरे अपने घर में घुस गए , बाबू जी अपने औफिस लौट गए , पड़ोस के कुछ लोग मुस्कुराये , खुश हुये ,सोच रहे थे, सही काम किया न, सफाई तो होनी चाहिए न ? सब अपनी अपनी जगह खुश थे , सफाई की बात हो गयी।


थोड़ी देर बाद अड़ोस -पड़ोस के जानवर आने लगे , सारे पत्तल चाट -चाट कर जूठन साफ़ कर दी। दो चार दिन में सारे पत्तल सूख गए , कुछ उड़ गए , कुछ इनके- उनकें वाहनों के पहियों में लग -लग के शहर में दूर दूर तक फ़ैल गए। हफ्ता लगा , सब साफ़ हो गया अपने आप। सफाई हो चुकी थी , लोग सब भूल चुके थे।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:53am

अभिव्यक्ति व्यंजनामूलक है आदरणीय डॉ. विजय शंकरजी..

प्रस्तुति के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीय..

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 29, 2014 at 10:32pm

आपकी सद्भावनाओं के लिए धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी, सादर।  

Comment by vijay nikore on October 29, 2014 at 3:44pm

संदेश देती इस अच्छी रचना के लिए बधाई।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 28, 2014 at 9:43pm

रचना आपको अच्छी लगी, ख़ुशी हुयी।  बधाई के लिए  बहुत बहुत  धन्यवाद प्रिय जीतेन्द्र जी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 27, 2014 at 10:26am

खोखली गंदगी की बहुत सुन्दरता और कटाक्ष  से सफाई करती हुई रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 27, 2014 at 1:19am

आदरणीय सोमेश कुमार  जी , आपने कहानी  को स्वीकार कर व्यंग  को सराहा है , सच्चाई यही है सब कुछ एक व्यंग बन कर ही रह गया है। बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 27, 2014 at 1:12am

आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपने कहानी के सारे पहलुओं को स्वीकार कर व्यंग  को सराहा है , सच्चाई यही है, सब कुछ एक व्यंग बन कर ही रह गया है ,  हर काम अपनी जगह पर पूरा होता है , फिर भी कोई परिणाम नहीं निकलता है , सब कुछ यथावत ही रहता है।  बहुत बहुत धन्यवाद।  जय हो।  

Comment by somesh kumar on October 26, 2014 at 9:16pm

सफ़ाई की प्रकृति या प्रकृति द्वारा सफ़ाई |बढियाँ कथा 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 26, 2014 at 8:27pm

विजय सर !

उम्दा कहानी i व्यंग्य करती, सन्देश देती, व्यवस्था की पोल खोलती i भीतर तक गुदगुदाती i जय हो i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service