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दोस्ती का हक़ ( लघु- कथा ) -- डॉo विजय शंकर

रवि का फोन था , देखते ही उस में उत्साह सा आ गया , औपचारिक अभिवादन के बाद धन्यवाद देते हुए बोला , " हाँ , और थैंक्स , तूने बहुत ही अच्छी टिप्पणी लिखी मेरे लेख पर , वर्ना अधिकतर तो लोग बस खींच - तान में ही लगे रहते हैं , तुझे वाकई में मेरे तर्क सही लगे ? "
" ओह ! वो पिछले हफ्ते वाला , वो यार , मैंने पूरा पढ़ा तो नहीं था , पर अब तेरा नाम देखा तो इतना तो लिखना ही था , आखिर दोस्ती का कुछ तो हक़ होता ही है न ?"
जितने उत्साह से उसने फोन उठाया था वो धीरे धीरे ठंडा होकर एक गहरी निराशा में विलीन हो गया।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 8:04am
आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , रचना पर आपकी सादर उपस्थिति एवं उसे स्वीकृति प्रदान कने लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 7:57am
आदरणीय मनीष जी ,आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 7:57am
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी , रचना को स्वीकृति देने और पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 7:57am
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , रचना को स्वीकृति देने और पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , लेखन में कुछ नया करने की कोशिश करते रहना चाहिए। सादर।

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Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 7:52am

लेखक तो मशरूम की तरह उग रहे हैं किन्तु अच्छे पाठक गायब हो रहे हैं वक़्त ही कहाँ है उनके पास पढने के लिए ...बहुत सुन्दर कटाक्ष को शाब्दिक  किया इस लघु कथा में हार्दिक बधाई आ० डॉ० विजय शंकर जी | 

Comment by maharshi tripathi on June 7, 2016 at 5:39pm
एक दम सही कहा आ Sheikh Shahzad Usmani जी से सहमत हूँ !!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 7, 2016 at 4:17pm
बहुत बढ़िया। कम से कम सभी रचनाकारों की पीड़ा को आपने इस बेहतरीन अंदाज़ में शाब्दिक तो किया! यही हो रहा है। बेहतरीन सार्थक भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on June 7, 2016 at 4:09pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी! आपने अपनी छोटी सी लघुकथा में बहुत बड़ी और गंभीर बात कह दी, साथ ही एक कटु सच्चाई को उजागर किया है! आजकल अधिकतर यही हो रहा है! सूरत देखकर तिलक लगाया जाता है! मुझसे भी ऐसी भूल हुई हैं! जिनका मुझे सदा अफ़सोस रहेगा! सादर!

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