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कुछ बातें - ( क्षणिकाएँ) -डॉo विजय शंकर

क्यों कोई आया है ,
जान लेते हो ,
चेहरा पढ़ लेते हो ,
अनकहा , सुन लेते हो ,
आंसू जो बहे ही नहीं ,
देख - सुन लेते हो।
********************
सपने उन्हें दिखाते हो ,
पूरे अपने करते हो।
********************
अपनी सब जरूरतें जानते हो ,
गरीब की रोटी भी जानते हो।
********************
जान कहाँ बसती है , जानते हो ,
उनकीं भी जान है , जानते हो।
********************
सरकार में हो ,
पर सरकार से ऊपर हो।
********************
कर लेते हो , जिनसे ,
उनके कर मजबूत करते हो।
********************
मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 12:32am

आदरणीय, आप अब एक अरसे से इस मंच पर हैं. मंच के विभिन्न आयोजनों में या स्वतंत्र प्रस्तुतियों के तौर क्षणिकाएँ प्रस्तुत होती रही हैं. मैं उन्हीं का संदर्भ दे रहा हूँ. 

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 12:27am
आदरणीय सौरभ पांडेय जी , आपकी टिप्पणियां सदैव कुछ न कुछ सीखने का अवसर देती हैं। इस बार यदि आप एक दो उदाहरण सहित स्पष्ट करते तो आपका आभार और अधिक होता , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 12:25am
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , रचना को पसंद करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 12:24am
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी , रचना को मान देने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2016 at 11:19pm

आदरणीय विजय शंकर जी, भाव पक्ष से समृद्ध आपकी क्षणिकाएँ, अपने होने की पहली शर्त वैचारिक गठन की सान पर वैसी न चढ़ पायीं. वैचारिकता खुलापन नहीं माँगती. भले पाठकीयता के सापेक्ष इस विन्दु पर लाख सिर धुने. इंगितों की सान्द्रता आपकी प्रस्तुति को और आयाम दे सकती थी. 

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2016 at 2:09pm
आ.विजय जी आप की लेखनी का जवाब नही,नमन आपको,आप जिस विधा में लिखते हैं,ये इतना आसान नही !!!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 8, 2016 at 1:39pm
वाह, वर्तमान परिदृश्य पर हमारी प्रवृत्तियों, गतिविधियों को कम शब्दों में अभिव्यक्त करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी। कहते हैं न कि अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता। देखो, सुनो, आगे बढ़ो, अपना रास्ता साफ़ करते चलो, जो करना है कर चलो।

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