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हादसे --- डॉo विजय शंकर

हादसे होते रहते हैं ,
कवरेज होते रहते हैं,
लोग देखते रहते हैं ,
चि ची ची करते रहते हैं ,
बयान होते रहते हैं ,
बहस के शो होते रहते हैं,
संवेदनाओं के लिए
दौरे होते रहते हैं ,
आंसू पोछे जाते हैं ,
आंसू बहाये जाते हैं ,
आंकड़े दिखाए जाते हैं ,
कितने कम हो रहे हैं ,
बताये , गिनाये जाते हैं ,
कितने गुहार नहीं होते ,
वो , नहीं गिनाये जाते हैं ,
अदालतों में पड़े , बढ़ते केस
कभी नहीं बताये जाते हैं ,
फैसले भी कब होते हैं ,
कब गिनाये जाते हैं ,
न्याय के नाम पर कैसे
कैसे अन्याय हो जाते हैं ,
वो नहीं बताये गिनाये जाते हैं।
जग में हम कितने पीछे हैं ,
अपराध में तो और पीछे हैं ,
यह गर्व से बताया जाता है ,
हम पीड़ित के घर , साथ हैं
फोटो में दिखाया जाता है ,
कितना वक़्त ,कितना रुपया
बहाया, यह नहीं बताया जाता है ,
अगले हादसे में पहले वाले को
कभी नहीं दोहराया जाता है ,
वही शिष्टाचार दोहराया जाता है ,
अगला अपराध न हो , थम जाए ,
ऐसा कदम नहीं उठाया जाता है ,
अपराध रोका नहीं जा सकता है
भगवान के द्वारा भी नहीं , यह
घोषित कर के बताया जाता है ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:22pm

आदरणीय  डा.विजय शंकर सर , हर बार आपकी रचना किसी न किसी सामजिक सरोकार  से जुडी होती है , आपकी ये संवेदनशीलता प्रभावित करती है , बहुत बहुत  बधाई आपको इस रचना पर  ! सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2015 at 10:22pm

जी यही हो रहा है वर्षों से पता नहीं कब तलक चलता रहेगा आंकड़ों में हिशाब किताब, बस देखते जाइये जनाब!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 7:47pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, रचना के अनुमोदन के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 7:45pm
आदरणीय राजकुमार आहूजा जी , बहुत सही पकड़ है है आपकी , सब यंत्र वत हो रहा है , पर संवेदनाएं बनी रहें तो यंत्र भी ठीक काम करते हैं , वरना तो सब धान ढाई पसेरी....... और , यंत्र संवेदनाओं से नियंत्रित होने चाहिए , संवेदनाएं यांत्रिक नहीं होनी चाहिए । बहुत बहुत आभार आपकी विवेचना का , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 7:37pm
प्रिय जीतेन्द्र जी, आपकी हौसला अफजाई का शुक्रिया, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 7:36pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, आपने मेरी अतुकांत कविता को बिन्दुवार बड़े करीने से पढ़ा है, समय दिया है, आपका बहुत बहुत आभार, आपकी इसी तरह की आज की नज्म " शाहिद " की तरह सच्चाई तो बयाँ होनी ही चाहिए , जबानी हो या कलम से , बात भी होनी ही चाहिए ।
आपकी उन्मुक्त प्रशस्ति के लिए सादर धन्यवाद, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 5:53pm

आ० विजय सर !

आपने हकीकत बयां कर दी  . सादर .

Comment by rajkumarahuja on April 15, 2015 at 12:29pm

ठीक ही कहा आपने माननीय डा. विजय शंकर जी !  सब यंत्र वत हो रहा है, मानवीय संवेदनाएं लुप्त-प्राय हैं !  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 11:27am

बहुत खूब, सर. शायद ! ऐसी समस्याएं जिनका समाधान नामुमकिन सा लगता है. बधाई स्वीकारें ,सर

Comment by Samar kabeer on April 15, 2015 at 11:00am
जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,बहुत ही सुन्दर रचना हुई है,अच्छे बिंदु उठाए हैं आपने,पंक्ति दर पंक्ति दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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