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'वतन को आग लगाने की चाल किसकी है'

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212     1122     1212      22

ग़ज़ल

उठा है ज़ह्न में सबके सवाल,किसकी है

तू जिस पे नाच रहा है वो ताल किसकी है

खड़े हुए हैं सर-ए-राह आइना लेकर

हमारे सामने आए मजाल किसकी है

ज़रा सा ग़ौर करोगे तो जान जाओगे

वतन को आग लगाने की चाल किसकी है

हमें तू बेवफ़ा कहता है ,ये तो देख ज़रा

लबों पे सबके वफ़ा की मिसाल किसकी है

कभी तो सोच,कभी तो ख़याल कर इसका

तू जिसके पीछे है महफूज़,ढाल किसकी है

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 968

Comment

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Comment by Samar kabeer on January 31, 2019 at 11:52pm

जनाब तेज वीर सिंह जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।

Comment by Samar kabeer on January 31, 2019 at 11:50pm

जनाब आसिफ़ ज़ैदी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।

Comment by PHOOL SINGH on January 21, 2019 at 4:06pm

कबीर साहेब बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई स्वीकारें

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 19, 2019 at 12:19am

आ0 कबीर सर हर एक शेर बहुत खूब लिखा आपने 

हमें तू बेवफ़ा कहता है ,ये तो देख ज़रा

लबों पे सबके वफ़ा की मिसाल किसकी है

बेहतरीन शेर लगा । आ0 अजय तिवारी जी की बात से सहमत हूँ कि आसान शब्दो मे भी बहुत अच्छी गज़ल कही जा सकती है । यह आपकी ग़ज़ल से सीख मिली । 

हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:15am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2019 at 8:36pm

मुहतरम जनाब समर साहिब आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2019 at 7:36pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल के लिए कोटि कोटि हार्दिक बधाईयाँ।

Comment by Md. Anis arman on January 18, 2019 at 10:44am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है सर ,हर शेर प्यारा है  बहुत बहुत मुबारक 

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2019 at 8:53pm

खड़े हुए हैं सर-ए-राह आइना लेकर

हमारे सामने आए मजाल किसकी है ....वाह! ग़ज़ब का शेर!

इस शानदार ग़ज़ल के शेर दर शेर दाद के साथ ढेर सारी बधाई क़ुबूल कीजिए सर. सादर.

Comment by Ajay Tiwari on January 17, 2019 at 5:13pm

आदरणीय समर साहब,

आपकी इस ग़ज़ल से दो चीजें सीखी जा सकती हैं :

1. बिना 132 शेर कहे भी किस तरह बेहतरीन ग़ज़ल कही जा सकती है.

2. उम्दा ग़ज़ल कहने के लिए ये ज़रूरी नहीं कि मिसरे में हर शब्द ऐसा हो कि पाठक को dictionary की शरण में जाना पड़े.

तू बेवफ़ा हमें कहता है,ये तो देख ज़रा > हमें तू बेवफ़ा कहता है,ये तो देख ज़रा ( सिर्फ एक सुझाव है इस्लाह नहीं ) 

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है. हर तीर सही निशाने पर है. हार्दिक बधाई.

सादर  

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