For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा

वफा  तुझ में  नहीं  बाकी  बताना  हो  गया टेढ़ा।१।


मुहर मुंसिफ  लगा  बैठे  सही  अब बेवफाई भी
कि बन्धन सात  फेरों  का निभाना हो गया टेढ़ा।२।


कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है
किसी  को  आईना  जैसे  दिखाना  हो  गया  टेढ़ा।३।


बुढ़ापा गर धनी हो  तो निछावर हुस्न है उस पर
हुनर  से  तो  जवानी  में  लुभाना  हो  गया टेढ़ा।४।


समय की मार है कैसी समझ पाया न कोई भी
हुए हम आज सीधे जो जमाना हो गया टेढ़ा।५।


मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर  भी बचाना हो गया टेढ़ा।६।


नहीं है छल कपट ठगने का थोड़ा भी हुनर हमको
महज तदबीर  से  घर  अब  चलाना  हो गया टेढ़ा।७।

**
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 845

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2018 at 2:23pm

आ. भाई तेजवीर जी, स्नेह के लिए आभार।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:37am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी। बेहतरीन गज़ल ।

मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर  भी बचाना हो गया टेढ़ा।५।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:52pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । स्नेह के लिए आभार । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ । ...सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:50pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सादर आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:50pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ..सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:47pm

आ. भाई बलराम जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on November 1, 2018 at 12:04pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर'जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के बारे में जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं ।

Comment by राज़ नवादवी on November 1, 2018 at 8:20am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. बाकी जो आदरणीय नीलेश जी ने कहा है, और मंच के अन्य असातिज़ा जो कहें.......सादर. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2018 at 11:40am

आ. लक्ष्मण जी,
मतले में चलाना और निभाना के मूल शब्द चल और निभ हैं जो अतुकांत हैं .. इसके चलते ईता दोष है...
मतले     में एक मूल शब्द जैसे, आना, जाना, ज़माना आदि लेने से ठीक रहेगा.
ग़ज़ल के   लिए बधाई 

सादर 

Comment by Balram Dhakar on October 30, 2018 at 11:49pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, आदरणीय लक्ष्मण जी।

बहुत बहुत बधाई।

सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
8 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service