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कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा

वफा  तुझ में  नहीं  बाकी  बताना  हो  गया टेढ़ा।१।


मुहर मुंसिफ  लगा  बैठे  सही  अब बेवफाई भी
कि बन्धन सात  फेरों  का निभाना हो गया टेढ़ा।२।


कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है
किसी  को  आईना  जैसे  दिखाना  हो  गया  टेढ़ा।३।


बुढ़ापा गर धनी हो  तो निछावर हुस्न है उस पर
हुनर  से  तो  जवानी  में  लुभाना  हो  गया टेढ़ा।४।


समय की मार है कैसी समझ पाया न कोई भी
हुए हम आज सीधे जो जमाना हो गया टेढ़ा।५।


मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर  भी बचाना हो गया टेढ़ा।६।


नहीं है छल कपट ठगने का थोड़ा भी हुनर हमको
महज तदबीर  से  घर  अब  चलाना  हो गया टेढ़ा।७।

**
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2018 at 2:23pm

आ. भाई तेजवीर जी, स्नेह के लिए आभार।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:37am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी। बेहतरीन गज़ल ।

मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर  भी बचाना हो गया टेढ़ा।५।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:52pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । स्नेह के लिए आभार । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ । ...सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:50pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सादर आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:50pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ..सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 1:47pm

आ. भाई बलराम जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on November 1, 2018 at 12:04pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर'जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के बारे में जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं ।

Comment by राज़ नवादवी on November 1, 2018 at 8:20am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. बाकी जो आदरणीय नीलेश जी ने कहा है, और मंच के अन्य असातिज़ा जो कहें.......सादर. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2018 at 11:40am

आ. लक्ष्मण जी,
मतले में चलाना और निभाना के मूल शब्द चल और निभ हैं जो अतुकांत हैं .. इसके चलते ईता दोष है...
मतले     में एक मूल शब्द जैसे, आना, जाना, ज़माना आदि लेने से ठीक रहेगा.
ग़ज़ल के   लिए बधाई 

सादर 

Comment by Balram Dhakar on October 30, 2018 at 11:49pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, आदरणीय लक्ष्मण जी।

बहुत बहुत बधाई।

सादर।

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