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दुख बयानी है गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल
भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।


कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन
अब पलाशों की  उफनती  धुर जवानी है गजल।२।


वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा
माँ पिता के प्यार की  भी  अब निशानी है गजल।३।


पंछियों की चहचहाहट  फूल की मुस्कान भी
गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है गजल।४।


पास जिनके यार खुशियाँ कर ही लेंगे सब्र वो
सबसे पहले गमजदा को यूँ  सुनानी है गजल।५।


आज तक जो है कहा कमतर नहीं यारो मगर
इससे बेहतर और भी इक यार आनी है गजल।६।


साथ आदम के रची  लय  यार इसकी ईश ने
प्रश्न तू अब पूछ मत कितनी पुरानी है गजल।७।


मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 16, 2018 at 3:13pm

आदरणीय धामी साहब उत्तम गजल के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by narendrasinh chauhan on October 16, 2018 at 1:46pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब,

 ख़ूब, उम्दा ग़ज़ल

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 16, 2018 at 12:54pm

आ. एड्मिन महोदय, गजल को फीचर कर सम्मानित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 16, 2018 at 12:52pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति से मान  और नेक सलाह के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on October 16, 2018 at 12:04pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

4थे शैर के सानी मिसरे में 'एक' को "इक" कर लें,लय बाधित हो रही है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 16, 2018 at 10:56am

आ. भाई बृजेश जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 16, 2018 at 10:32am

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..सभी शेर लाजबाब

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 15, 2018 at 7:19pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और उत्तसाहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 15, 2018 at 7:15pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सादर अभिवादन। स्नेह और अच्छे परामर्श के लिए आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 15, 2018 at 6:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।

पास जिनके यार खुशियाँ कर ही लेंगे सब्र वो
सबसे पहले गमजदा को यूँ  सुनानी है गजल।५।

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