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३ क्षणिकाएं....

भावनाओं की घास पर
ओस की बूंदें
रोती रही
शायद
बादलों को ओढ़कर
रात भर
चांदनी
... ... ... ... ... ... .

गोद दिया
सुबह की ओस ने
गुलाब को
महक
तड़पती रही
अहसासों के बियाबाँ में
यादों की नोकों पर
... ... ... .. .. .. .. . .
आकाश
ज़िंदगी भर
इंसान को
छत का सुकून देता रहा
उसे
धूप दी, पानी दिया ,
ईश के होने का
अहसास दिया
मगर
वह रे इंसान
आया जो वक्त देने का
भर दिया उसका दामन
चिता में जल के
धुएँ के गुबार से

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 9, 2018 at 1:08pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार /

Comment by Sushil Sarna on October 9, 2018 at 1:08pm

आदरणीय नवीन मणि जी पुनः आपकीन इस प्रशंसा का हृदयतल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 9, 2018 at 1:07pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा की दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on October 9, 2018 at 1:07pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2018 at 10:56am

आ. भाई सुशील जी, सुंदर क्षणिकाएँ हुयी हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:32am

धूप दी, पानी दिया , 
ईश के होने का 
अहसास दिया 
मगर 
वह रे इंसान 
आया जो वक्त देने का 
भर दिया उसका दामन 
चिता में जल के 
धुएँ के गुबार से

वाह बहुत ही सुन्दर । प्रभावशाली प्रस्तुति ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:30am

आ0 सुशील शरण साहब लाजबाब रचना के लिए बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:13pm

बहुत ही सुन्दर , मार्मिक अभिव्यक्ति।
“ वाह रे इंसान
आया जो वक्त देने का
भर दिया उसका दामन
चिता में जल के
धुएँ के गुबार से ”
बहुत ही मार्मिक।
तेरा तुझ को अर्पण ,
कण कण , राख राख ,
धुंआ धुंआ , बादल बादल।
बधाई, सुशील सरना जी ! सादर।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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