For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निकलेगा आफ़ताब इसी आसमान से (ग़ज़ल)

221   2121  1221  212

क़ीमत ज़बान की है जहाँ बढ़के जान से
है वास्ता हमारा उसी ख़ानदान से

चढ़ना है गर शिखर पे, रखो पाँव ध्यान से
खाई में जा गिरोगे जो फिसले ढलान से

पल - पल झुलस रही है ज़मीं तापमान से
मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से

काली घटाएँ रास्ता रोकेंगी कब तलक?
निकलेगा आफ़ताब इसी आसमान से

ये दौलतों के ढेर मुबारक तुम्हीं को हों
हम जी रहे हैं अपनी फ़क़ीरी में शान से

क्या-क्या न हमसे छीन गयी ये तरक्कियाँ
गुल तो हैं पर है ख़ुशबू नदारद बगान से

छू ली बुलंदियाँ तो ये एहसास "जय" हुआ
कितनी क़रीब है ये ज़मीं आसमान से

(मौलिक व अप्रकाशित)

© जयनित

Views: 638

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2018 at 11:54am
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 26, 2018 at 2:07pm

आदरणीय जयनीत कुमार मेहता जी सुंदर गजल लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2018 at 11:30am

भाई जयनित जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई .

Comment by Samar kabeer on August 25, 2018 at 10:50pm

यहाँ भी ऐडिट कर दीजिये ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on August 25, 2018 at 10:47pm

आदरणीय समर कबीर जी, सादर प्रणाम।

ओबीओ से दूर रहने के दौरान जो कमी खलती रही, वो आज पूरी होती-सी लग रही है। मैं बता नहीं सकता एक लंबे समय से ग़ज़ल का अभ्यास छूटने के बाद किसी नई रचना पर आपकी ऐसी प्रतिक्रिया प्राप्त होना मेरे लिए कितनी ख़ुशी की बात है। आपके सुझाव के अनुसार मैंने मूल प्रति में संशोधन कर लिया है। निरंतर मार्गदर्शन के लिए पुनः कोटि-कोटि धन्यवाद आपको। आपका आशीर्वाद बना रहे, यही कामना करता हूँ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on August 25, 2018 at 10:42pm
आदरणीय सुशील सरना जी, ग़ज़ल को पढ़ने व प्रतिक्रिया देने हेतु हार्दिक आभारी हूँ आपका।
Comment by Samar kabeer on August 25, 2018 at 10:33pm

जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल पढ़ने का मौक़ा मिला है ।

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कुछ बारीक बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से'

इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो लय की दृष्टि से उचित होगा :-

'मुकरे हैं सारे अब्र जो अपनी ज़बान से'

'क्या-क्या न हमसे छीन गयी ये तरक्कियाँ'

इस मिसरे में 'गयी' को " गईं" कर लें ।

'छू ली बुलंदियाँ तो ये एहसास "जय" हुआ'

इस मिसरे में 'छू ली' को "छू लीं" कर लें ।

Comment by Sushil Sarna on August 25, 2018 at 6:06pm

आदरणीय जयनित जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. . समुन्दर ने नदी को ख़त लिखा है मुझे इन…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. जयहिन्द रायपुरी जी,पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ.तहज़ीब हाफ़ी की इस ग़ज़ल को बाँधने में दो मुख्य…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service