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दिल के नज़दीक से ....”संतोष”

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन

दिल के नज़दीक से गुज़रो तो बता कर जाना

ये भी चाहत की है इक रस्म निभा कर जाना

तुम मुझे छोड़ के जाते हो तो जाओ लेकिन

अपने भेजे हुए ख़त सारे जला कर जाना

क्या बताऊंगा जुदाई का सबब लोगों को

जो हक़ीक़त है ज़माने को बता कर जाना

ताकि तन्हाई से घबराऊँ तो बातें कर लूँ

अपनी तस्वीर को कमरे में लगा कर जाना

तुम ज़माने का भला करने चले हो देखो

कोई 'संतोष' के हक़ में भी दुआ कर जाना

संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on July 30, 2018 at 2:20pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 29, 2018 at 2:14pm

वाह बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई

Comment by santosh khirwadkar on July 27, 2018 at 9:12am

बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर साहब

Comment by TEJ VEER SINGH on July 26, 2018 at 8:47pm

हार्दिक बधाई आदरणीय संतोष जी। बेहतरीन गज़ल।

क्या बताऊंगा जुदाई का सबब लोगों को

जो हक़ीक़त है ज़माने को बता कर जाना

Comment by santosh khirwadkar on July 25, 2018 at 8:27pm

प्रणाम आदरणीय , बहुत-बहुत शुक्रिया!!

Comment by Samar kabeer on July 25, 2018 at 11:46am

जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by santosh khirwadkar on July 24, 2018 at 6:43pm

धन्यवाद आ धामी जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 24, 2018 at 4:46pm

आ. संतोष जी, सुंदर गजल हुयी है, हार्दिक बधाई ।

Comment by santosh khirwadkar on July 24, 2018 at 4:04pm

शुक्रिया आ . आरिफ़ साहब!!!

Comment by Mohammed Arif on July 24, 2018 at 11:53am

आदरणीय संतोष जी आदाब,

                        बहुत दिनों के बाद एक रोमाण्टिक अंदाज़ की ग़ज़ल पढ़ने को मिली । हर शे'र उम्दा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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