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फिर ज़ख़्मों को ...संतोष

अरकान:-

फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा

फिर ज़ख़्मों को धोने का दिल करता है

चुपके चुपके रोने का दिल करता है

जब जब भी मैं तुझको देखूँ दिलबर

अपना सब कुछ खोने का दिल करता है

होती है जब ग़म की यूरिश इस तन पर

चादर तान के सोने का दिल करता है

काले काले बादल झूम के बरसें तो

तुझको संग भिगोने का दिल करता है

रोते देखूँ जब 'संतोष' किसी को मैं

तब मेरा भी रोने का दिल करता है

~संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on September 26, 2018 at 8:18am

बहुत धन्यवाद आ लक्ष्मण धामी साहब!!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:27am

आ. संतोष भाई सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by santosh khirwadkar on August 25, 2018 at 9:53pm

शुक्रिया आ.बृजेश जी !!!!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 25, 2018 at 9:02pm

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...

Comment by santosh khirwadkar on August 25, 2018 at 8:39pm

बहुत धन्यवाद आ.विजय जी !

Comment by vijay nikore on August 25, 2018 at 3:36pm

बहुत ही अच्छी गज़ल लिखी है। हार्दिक बधाई, संतोष जी।

Comment by santosh khirwadkar on August 24, 2018 at 5:28pm

हृदय से आभार आ. शर्मा साहब !!!!!

Comment by santosh khirwadkar on August 24, 2018 at 5:27pm

प्रणाम आ . समर साहब ,बहुत -बहुत शुक्रिया!!!

Comment by santosh khirwadkar on August 24, 2018 at 5:26pm

तहेदिल से शुक्रिया आ आरिफ़ साहब!!

Comment by Sushil Sarna on August 24, 2018 at 3:44pm

वाह आदरणीय संतोष जी बहुत ही खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

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