कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?
मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.
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ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ
चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.
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उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन
ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.
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इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,
मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.
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दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा
मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.
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अब कि बरसात में ऐ काश कि बन जाऊँ किसान
और फिर धरती की मैं गोद भराई देखूँ.
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दोस्त निकले थे मेरे, शह्र में कल ले के जुलूस
अब मैं निकला हूँ.. कहाँ आग लगाई.. देखूँ.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी
शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी
आदरणीय भाई निलेश जी आपकी रचना पर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिला ..इस रचना पर भी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद आ. समर सर,
जुलूस वाले शेर को भी आपके कहे अनुसार बदल लिया है ... कभी -कभी मान भी लेता हूँ, कभी नहीं भी मानता हूँ..
किताब पर भरोसा ज़रूरी है या रब पर? जब ये सवाल मैं ख़ुद से करता हूँ तो पाता हूँ कि रब पर भरोसा कर के मनुष्य अधिक विनम्र और सहिष्णु बनता है.. किताब पर भरोसा करने वालों में ऐसा नहीं देखा मैंने..
शायद भविष्य में सोच बदले मेरी...वैसे उम्मीद कम ही है...
फिर शाइरी ख़ुद में मनोभावों को व्यक्त करने का साधन मात्र है.. अगर दिल की आवाज़ को शब्द देना भी ज़रूरी हैं ..
फिर ..
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में ...
मुझे भी ये सब कहने की प्रेरणा वही ईश्वर देता है जिसने दूसरों से कुछ किताबें लिखवाई हैं..अत: मैं भी इसे ईश्वरीय आदेश मान कर कलमबद्ध करता रहूँगा..
सादर
मतला बहुत उम्दा हो गया है ।
'इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को
मुस्कुराहट में किसी,रब की लिखाई देखूँ'
ऊला मिसरा कहता है कि "अब"मुझ को भरोसा नहीं,यानी पहले भरोसा था,तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि अब भरोसा नहीं?आपकी कही हुई बात स्पष्ट नहीं हो रही है,अब रहा ये सवाल कि क्या कोई किताब जैसा कि कहा जाता है,माना जाता है कि ये ईश्वर ने लिखी है,को सिर्फ़ इसलिये नकार देना कि ये बात आपको नहीं जँचती,मुनासिब नहीं,क्या आपने उस किताब या किताबों का गहन अध्यन किया है?मैं समझता हूँ कि आप कभी उनके क़रीब भी नहीं गए होंगे,दुनिया के बड़े बड़े दानिश्वर जो उस ज़माने में हुए उन्होंने भी इसका इंकार किया था,लेकिन उन किताबों के अध्यन के बाद उनके विचारों में बड़ा बदलाव देखा गया,ख़ैर ये अपनी अपनी सोच है,लेकिन अपनी ऐसी सोच को क्यों दूसरों पर थोपा जाये?और भी बहुत से मज़ामीन हैं,ज़ाहिर है जो लोग इस पर यक़ीन रखते हैं,ईमान लाये हैं,हम अपने शैर से उनका दिल दुखाने का क्या अधिकार रखरे हैं,जो आप सोचते हैं,ज़रूर सोचिये,लेकिन किसी दूसरे की सोच या ऐतिक़ाद को ठेस पहुंचाकर क्या मिलेगा,इसलिये मेरी आपसे मोद्दीबाना गुज़ारिश है कि ऐसे अशआर लिखने या कहने से परहेज़ करें ।
'दोस्त फिरते थे मेरे शह्र में भी लेके जुलूस'
इस मिसरे से बहतर मुझे ये मिसरा लगा:-
'दोस्त निकले थे मेरे शह्र में फिर लेके जुलूस'
इस मिसरे में 'फिर' शब्द ने जो मज़ा पैदा किया है,उसे महसूस कीजिये,,वैसे जो आपको अच्छा लगे वो करें,तनाफ़ुर तो निकल गया ।
धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी
आभार
आ. समर सर,
ग़ज़ल पर आप की इस्लाह पाकर ग़ज़ल समृद्ध होती है ...
वैसे तो सच्चाई को सचाई भी लिखा/ कहा जाता है जैसे नदी को नद्दी ...लेकिन फिर भी शंका के निवारण के लिए मतला ही बदल देता हूँ...
अब मतला यूँ पढ़ें ..
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क्यूँ खँडर जिस्म पे जमती हुई काई देखूँ
रूह की क़ैद-ए-अनासिर से रिहाई देखूँ. ..
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मुस्कुराहट वाला शेर शायद कमज़ोर रह गया इस मायने में कि जो मैं कहना चाहता हूँ वो आप तक पहुँचा ही नहीं ..
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किताबों से मेरी मुराद उन तमाम धार्मिक किताबों से है जो स्वयं के ईश्वरीय शब्द होने का दावा करती हैं..जिन्हें माना जाता है कि स्वयं ईश्वर ने कहा है अथवा अपने दूत के माध्यम से कहलवाया है ..मैं ऐसी पुस्तकों को ईश्वर कृति मानने से इनकार करते हुए कहता हूँ कि सिर्फ मनुष्य की मुस्कुराहट में ही उस परमात्मा की लिखाई दिखती है मुझे ..... और अधिक स्पष्ट करने के लिए सानी मिसरे को
मुस्कुराहट में किसी, रब की लिखाई देखूँ.
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तनाफुर को कुछ यूँ काफ़ूर किया है ..देखें
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दोस्त फिरते थे मेरे शह्र में भी ले के जुलूस ..
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तीनों तर्मीमों पर आपका अनुमोदन चाहता हूँ ..
सादर
आ. राजेश दीदी,
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला देने के लिए पर्याप्त है ..उस पर समीक्षा और इस्लाह हो जाय तो क्या कहने ..
बहुत बहुत आभारी हूँ ... भाई वाले शेर में //में// किये लेता हूँ ..बाकी पर विचार करता हूँ,
सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश जी।बेहतरीन गज़ल।
दोस्त निकले थे मेरे, शह्र में कल ले के जुलूस
अब मैं निकला हूँ.. कहाँ आग लगाई.. देखूँ.
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