For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोने की बरसात करेगा
सूरज जब इफ़रात करेगा

बादल पानी बरसाएंगे
राजा जब ख़ैरात करेगा

जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा

कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा

जो संवेदनशील नहीं वो
फिर घायल जज़्बात करेगा

जो थोड़ा दीवाना है वो
अक्सर हक़ की बात करेगा

नंद कुमार सनमुखानी.
-
"मौलिक और अप्रकाशित"

Views: 1098

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 24, 2018 at 5:46pm
आली जनाब Samar Kabeer साहिब आदिब।
सबसे पहले तो ग़ज़ल पर आपके द्वारा दी गई दाद और मुबारकबाद के लिए दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूं।
दूसरे, आपने ग़ज़ल पर कमेंट्स करते हुए "ऐब-ए-तनाफुर" और "तक़ाबुल-ए-रदीफ" टर्म्स का इस्तेमाल किया है, जो अगर ईमानदारी से कहूं तो मेरे लिए बिल्कुल नये लफ़्ज़ हैं। इनके बारे में जानने समझने की ख्वाहिश है, ताकि आपकी बात का मफहूम समझ सकूं और फिर औसके मुताबिक़ सीख कर सुधार कर सकूं।
Regards...
Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 3:20pm

जनाब नंद कुमार सनमुखवानी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'सूरज जब इफ़रात करेगा'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये,दूसरी बात ये कि क़ाफ़िया दोष भी है, आपने ग़ज़ल में 'ते'"त" के क़वाफ़ी लिये हैं लेकिन "इफ़रात" लफ़्ज़ "तोय"पर ख़त्म होता हैं, ग़ौर कीजियेगा ।

'जो पहले भी दोस्त नहीं था

वो तो फिर से घात करेगा'

इस शे'र में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ है, देखियेगा ।

इस शे'र पर जनाब निलेश साहिब ने जो इंगित किया है,वो दुरुस्त है, लेकिन आपने जो तर्क दिया है,वो आपकी सोच के हिसाब से ठीक लगता है,क्योंकि आप शाइर की नज़र से देख रहे हैं,पाठक की नज़र से देखने पर,वो भाव उजागर नहीं हो रहे हैं, 'दोस्त' की जगह "दुश्मन" ही क्यों नहीं कह देते?

उर्दू शाइरी में "दोस्त" को भी दुश्मन कहा जाता रहा है,मिसाल के तौर पर:-

'दोस्त होता है जान का दुश्मन

वक़्त जब बेबसी का आता है'

'दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मह्रबानी चाहिये'

"हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमाँ क्यों हो'

इस तनाज़ुर में मेरे नज़दीक शे'र का मफ़हूम साफ़ है,लेकिन आम पाठक इतनी गहराई से नहीं सोचता ।

ग़ज़ल के चार अशआर में 'वो' शब्द खटकता है, इससे बचा जा सकता था ।

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 8:34pm
मान्यवर,
यह खुले मन से विचारों के आदान-प्रदान की बात है। आप तो मेरी रचना की बेहतरी के लिए कोशिश कर रहे है। रचना के बारे में आपका दृष्टिकोण मेरे लिए ही सहायक सिद्ध होने वाला है, इस लिए उसे समझने का प्रयास किया। इसी लिए उसके संबंध में अपना पक्ष प्रस्तुत किया।
आप निश्चिंत रहें, मैने बिल्कुल भी अन्यथा नहीं लिया है, आपसे भी ऐसा ही आग्रह है।
आपको शइर पढ़ कर जो महसूस हुआ, आपकी राय स्वाभाविक ही पर आधारित होगी। आपको अपनी राय कायम करने का पूरा अधिकार है। मैं इसका एहतराम करता हूं..
सादर..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 8:03pm

आ. नन्द कुमार जी,
 

//जो पहले भी दोस्त नहीं था// में कहीं इशारा दिखाई नहीं देता है शत्रुता का ..
आप मेरे दोस्त नहीं हैं अत: आप  शत्रु मान लूँ यह ठीक न लगा मुझे..
आप अन्यथा न लें 
सादर 

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 7:25pm
Respected Nilesh Shevgaonkar जी,
आभारी हूं आपका कि आपने मेरी रचना को मन से पढ़ा और उसके बारे में अपनी अमूल्य टिप्पणी लिखकर मेरा उत्साह वर्धन किया।
मज़कूर शइर के मिसरा-सानी में "फिर से" शब्दों का इस्तेमाल हुआ है, जिन पर आपका ध्यान चाहूंगा, जो इंगित करता है कि 'वह पहले भी घात कर चुका है', अतः वह अपनी दुश्मनी तो पहले ही ज़ाहिर कर चुका है...
इसके अलावा मिसरा-अव्वल में भी उसके बारे में हल्का सा इशारा किया है, यह लिखकर कि 'जो "पहले भी" दोस्त नहीं था' ।
माननीय, आपके कथन पर मेरे इस निवेदन के बाद , इस शइर के बारे में यदि आप मेरे आग्रह पर एक बार फिर विचार कर अपनी राय से अवगत कराएंगे तो मेरे लिए वह निश्चय ही मददगार साबित होगी... आशा है निराश नहीं करेंगे ...
सादर...
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 6:49pm

आ. नंदकुमार जी,

इस ग़ज़ल के लिए बधाई ..ग़ज़ल भावों को समेटने में  सफल हुई है लेकिन अक्सर शेर एक ही तरकीब के हैं ..
जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा.. इस शेर का भाव पक्ष कमज़ोर है...इस लिहाज से कि यह तय मान लिया गया है कि जो दोस्त नहीं है वह दुश्मन ही होगा...सोचियेगा 
सादर 

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 2:03pm
बहुतबहुत शुक्रिया आदरणीय TEJ VEER SINGH जी..
Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 2:02pm
जनाब Mohammad Arif साहब, और
माननीय Shyam Narain Verma साहब.
ग़ज़ल को पसंद करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई करने लिये आप दोनों महानुभावों का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं।
जहां तक ग़ज़ल पोस्ट करते समय उसके अरकान लिखने के नियम की बात है, आगे इसका ज़रूर ध्यान रखूंगा।
Comment by TEJ VEER SINGH on April 23, 2018 at 1:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नंद कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा

कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2018 at 12:10pm
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service