For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(122 122 122 122)

करोगे कहां तक सबब की वज़ाहत
अंधेरों की कब तक करोगे इबादत

यक़ीं रख के सर को झुकाते रहे हो
दिखाते रहे हो ये कैसी शराफ़त

नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत

नई प्रेम नदियां बहा दो जहां में
यहां पर दिखाओ ज़रा सी सख़ावत

भले ख्वाब हों पर हक़ीक़त बनेंगे
मिटेगी यहां नफरतों की रिवायत

.

- नंद कुमार सनमुखानी

- मौलिक और अप्रकाशित

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 6, 2018 at 2:43pm

वाह वाह खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on May 6, 2018 at 11:18am

बहुत-बहुत शुक्रिया  आ. 'मुसाफ़िर' साहब..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 11:13am

आ. नन्दकुमार जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on May 5, 2018 at 6:07pm
जी, श्रीमान...
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 5:11pm

आ. नन्द कुमार जी,
मेरा  कतई आग्रह नहीं है कि आप  वो शेर शामिल करें...
मैं सिर्फ़ यह इंगित कर रहा हूँ  कि बात कहने के तरीके और भी हैं... और उन्हीं शब्दों के आसपास हैं..
बस कवि से हटकर पाठक बनकर सोचने की आवश्यकता है ..
सादर 

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on May 5, 2018 at 5:03pm

आ. Samar Kabeer साहब, मुझे भी 'ही' की जगह 'तो' का इस्तेमाल ज़्यादा अपीलिंग लग रहा है, इस लिए मैं इस शइर में ये सुधार कर लेता हूं और  शइर को बेहतर बनाने में मेरी मदद करने के लिए आपका शुक्रिया अदा करता हूं।

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on May 5, 2018 at 4:51pm
माननीय Nilesh Shevgaonkar जी,
बधाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
हर आदमी का अपनी बात कहने का अंदाज़ अपना-अपना होता है। वो अंदाज़ बहुत अच्छा है, या कम अच्छा है अथवा बिल्कुल भी अच्छा नहीं है, यह एक अलग बात है। सब लोग एक जैसा अच्छा या बुरा तो नहीं लिख सकते ना ! ग़ालिब साहब का इस पर एक बहुत अच्छा शइर है, जो यक़ीनन आपने भी सुना होगा:

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है "अंदाज़े बयां और"
आपके द्वारा सुझाया गया शइर वाक़ई बहुत बढ़िया है, लेकिन वह आपकी रचना है। काश मैं भी किसी दिये गये विषय पर इतना अच्छा शइर इतनी आसानी से लिख पाता। लेकिन धीरे-धीरे मेरे इज़हार में भी स्पष्टता और रवानी आती जाएगी, ऐसी उम्मीद करता हूं।
बहरहाल, आप जिस अपनेपन से मेरी अदना कोशिशों की कमियों-ख़ामियों की तरफ इशारा करते हैं, उसका मैं क़ायल हूं और इसके लिए आपका शुक्रिया अदा करता हूं।
Regards....
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 4:24pm

आ. नन्द कुमार जी 
अच्छी ग़ज़ल हुई है ,,बधाई ..
शेरोन में लोच की थोड़ी कमी लग रही है ..
उदाहरण  के लिए 
.
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत.... इसे यूँ कहा जा सकता है ..
.
ग़लत है तुम्हारी नज़र में भी लेकिन 
किये जा रहे हो उसी की वकालत 
.
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 5, 2018 at 3:47pm

भर्ती के शब्द से मुराद है, उसकी जगह कोई मज़बूत शब्द जैसे :-

'उसी की तो करते रहे हो वकालत'

'तो' शब्द यहाँ 'ही' की बनिस्बत मुनासिब है, यही मैं अर्ज़ करना चाहता था ।

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on May 5, 2018 at 12:48pm
माननीय Samar Kabeer साहब,
ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं।
आपकी राय में जो 'ही' भर्ती का लगता है उसे हटा देने पर , वज़न की कमी के अलावा,
मेरे विचार से बात का वो पैनापन ख़त्म हो जाता है, जो वहां मेरे विचार से होना चाहिए , तनिक नज़र डालें :
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की करते रहे हो वकालत
ये शइर वैकल्पिक रूप में शायद मैं यूं लिखता;
"नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की तो करते रहे हो वकालत"
मिसरे में हे "तो" या "ही" हटा देने से, वज़न की अन्यथा पूर्ति करने की हालत में भी, मुझे लगता है यह किसी सपाट बयान जैसा लगेगा...
सादर...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service