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बदल रही परिवेश बेटियां,करके अद्भुत काम

विश्व पटल पर आगे आकर,रोशन करती नाम ll

श्रम के बल से जीत रही हैं,स्वर्ण पदक हर बार

निज प्रतिभा से कर जाती हैं,  सारी बाधा पार ll

सुरम्य धरती का हर कोना , बेटी से गुलजार

स्नेह भावमय जग को करती,सदा लुटाती प्यार ll

अंगारों पर चलना सीखी , बेटी बनी जुझार

कठिन घड़ी जब भी आती है,जमकर करती वार ll

सीख सको सीखो बेटी से, जीवन का हर सार 

दया धर्म समता ममता की , बेटी है आगार ll

जिस घर में लें जन्म बेटियां,वह घर स्वर्ग समान

तात भ्रात बन फर्ज निभाएं,करें नहीं अपमान ll

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 13, 2018 at 9:41am

मुझे तो मालूम है कि ये रचना सरसी छन्द में है, लेकिन नए सीखने वाले नहीं जानते न? इसलिये मंच पर ये नियम बनाया गया है कि रचना के साथ विधा और विधान लिख दिया जाये,ये सब नये सीखने वालों की आसानी के लिए होता है,भाई,इसलिये आपसे निवेदन है कि रचना के साथ विधा और विधान लिख दिया करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2018 at 9:19am

जनाब डॉक्टर छोटे लाल साहिब ,बेटियों पर गज़ब के छन्द हुए हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 13, 2018 at 9:13am

आदरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन उत्साह वर्द्धन के लिए दिल से शुक्रिया ,सरसी छन्द में इस रचना को साधने का प्रयास किया हूँ पुनः दिल से आभार 

Comment by Samar kabeer on April 12, 2018 at 6:22pm

जनाब डॉ.छोटेलाल सिंह जी बहुत उम्दा छन्द बेटियों की शान में,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

रचना के साथ उसकी विधा और विधान लिखना मंच का नियम है ।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:27pm

सच है, बेटियों के बिना घर सम्पूर्ण नहीं लगता । बहुत ही भावपूर्ण कविता । बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 12, 2018 at 10:43am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

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