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आलमे खयाल

(अतुकांत)

शाम बैठी रही हो कर तैयार वह दुलहन-सी

उदास.. मुन्तज़िर थी वह आज भी इश्क की

ज़रूर निराला ही होगा  यह आलमे तसव्वुर

दर पर हाँ एक हल्की-सी दस्तक तो हुई थी

पर वह जो आया था दर पर वह इश्क न था

फ़कत आलमे फ़ना था .. हवा का झोंका था

उसका क्या ? आया,  फ़ना कर के चला गया

आदतन किसी और दरवाज़े पर दस्तक देने

                   -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

आलमे खयाल    = कल्पना जगत

आलमे तसव्वुर   = गूढ़ ध्यान का संसार

आलमे  फ़ना      =नश्वर जगत

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Comment

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Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:32am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:31am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:30am

    सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय  शेख़ शहजाद उस्मानी साहब। आपसे मिला मान बहुमान्य है।

Comment by नाथ सोनांचली on April 11, 2018 at 5:18am

आद0 विजय निकोर जी सादर नमन। बढिया कविता कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2018 at 1:30pm

आ. भाई विजय जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2018 at 11:33am

वाह। // आलमे फ़ना . .. हवा का झोंका // बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विजय निकोरे साहिब। शब्दार्थ के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on April 8, 2018 at 10:50am

आदरणीय भाई समर जी, आदाब।

आपका सुझाव बहुत अच्छा लगा, और संशोधन कर दिया है।

मैं उर्दु कविता लिखने में अभी नया हूँ, लेकिन शीघ्र सीखने की कोहिश कर रहा हूँ।

कृपया मार्ग-दर्श्न करते रहें। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 10:29am

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on April 8, 2018 at 9:53am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ भाई। संशोधन कर दिया है।

Comment by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 7:47am

आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,

                              अपनी परंपरागत शैली से अलग हटकर रचना पेश की आपने । बड़ी ख़ुशी की बात है । रचनाकार में खिलंदड़पन होना आवश्यक है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।

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