For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता--बहुत बेईमानी लगता है

आत्मा के
कल-कल छल-छल जल में
शब्दों की ध्वनियाँ तैरती है
देर तक गूँजती रहती है
तब बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के मुहाने की छाती पर
नंगे पैर खड़े होकर चलना
समझौतों के ताबीज पहनना
मक्कारी का मंत्र जाप करना
रोज़ आत्मा का गला घोटना
खंडित-खंडित होकर
अखंडित समाधि बनना
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के रिश्तों में जीना
जहाँ रिश्तों में डाका पड़ा है
ख़ूनी हाथ अट्टहास करते हैं
अकेलेपन की साँसें थम गई है
रातरानी को लकवा हो गया है
गुलाब सारे लहू पी रहे हैं
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के पर्यावास पर चर्चा करना
आँगन के बरगद की खोह में
ज़हरीले नागों ने बना ली है बस्ती
पक्षियों के कलरव की हो गई है हत्या
तोता-मैना , कबूतर के फेफड़ों में
जमा हो गई है कार्बन
किंगफिशर नज़र नहीं आते
कठफोड़वा को नहीं मिलता ठूँठ
मोबाइल टॉवर के ऊँचे मचान पर
चिड़िया करती है नाकाम कोशिश
हाई रेडिएशन ने कैंसर को ज़िंदा कर दिया है
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग की कविता को पढ़ना-सुनना
जहाँ कविता की नदी सूखकर रेत हो गई है
गर्म रेत पर सौंदर्यानुभूति तड़पती है
भावों-विचारों को चक्कर आते हैं
प्रतीकों और बिम्बों के पैर लड़खड़ाते हैं
कैनवास की हड्डियाँ निकल गई हो
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के चरित्र को बेशर्म आँखों से देखना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on February 7, 2018 at 10:38am

हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी। बेहतरीन कविता।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 7, 2018 at 9:54am

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, दुनिया के हालात पर प्रहार करती ज़बरदस्त रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब की बात का संज्ञान लीजियेगा।

Comment by Mohammed Arif on February 7, 2018 at 8:08am

रचना सराहना के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।

Comment by Mohammed Arif on February 7, 2018 at 8:07am

रचना सराहना के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय मोहित मुक्त जी ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 5:08am

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन भाव सम्प्रेषण के लिए आपको दिल से बधाई देता हूँ। 

अतुकांत कविता में तुकांत सयास नहीं होने चाहिए और किसी शब्द का दुहराव यथासम्भव न हो, यहीं प्रयास होना चाहिए। इस लिहाज से इस रचना को एक बार देखियेगा।। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service