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असाधारण आस

हवा की लहर का-सा

हलका स्पर्ष

कि मानो कमरे में तुम आई

मेरे कन्धे पर हलका-सा हाथ ...

छू कर मुझे, स्वपन-सृष्टि में

पुन: विलीन हो गई

कुछ कहा शायद

जो अनसुना रहा

या जो न कहा

वह मेरे खयालों ने सुना

कोई एक खयाल अधूरा

जो पूरा न हुआ

कण-कण काँप रहे तारों के

तिमिर-तल के तले

खयाल जो पूरा न हुआ

मुराद

बन कर रह गया, जैसे

अँधेरे स्वप्न से जागा कोई, सो गया

तुम्हारे दिल की धड़कन भी

इसी मुराद में थिरकती

तुम्हीं से अलग, पर तुमसे ज़्यादा

वह मुझमें धड़कती

और तुम सुन-सुन उसको

अनपेक्षित-सी, पहुँच जाती थी पास

सिर मेरे कन्धे पर

मेरी साँसों के स्पर्ष से शरमाए

आकांक्षित ओंठ तुम्हारे मुस्करा देते

पलकें कभी खुलती कभी मुंदती

उस स्वप्न-सृष्टि में अनुरंजित तुम

अधजगी-सी सोई निश्चल सरोवर-सी

तुम्हारी वह पहचानी

अपनी-सी धड़कन भी अब है

पुराने घाव-सी

थर्राता शीत-भरा रात का पक्षी

मेरा मन

नि:स्तब्ध .. उदास .. छिन्न-भिन्न

अँधियारे सूने में अब मेरी अनवस्थाएँ गहरी

एक दिया आस का फिर भी जलती लौ से

काँप-काँप है बटोरता रहा

मेरे अस्तित्व के अव्यवस्थित कण

कि लौट आएँगी तुम्हारी निर्दोश आँखे

तुम्हारे स्नेह-स्वरों की अनुगूँज लिए

                 ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on January 23, 2018 at 4:42am

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन।बढ़िया अतुकांत, भाव सम्प्रेषण उत्तम। इस कविता पर आपको अनन्त बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2018 at 6:43pm

पाठकों को भी उस अहसास से लवरेज करती हुई बहुत ही भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2018 at 3:07pm

अनुपम अहसासों का चित्रण किया आदरणीय...सादर

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2018 at 6:42pm

अँधियारे सूने में अब मेरी अनवस्थाएँ गहरी

एक दिया आस का फिर भी जलती लो से

काँप-काँप है बटोरता रहा

मेरे अस्तित्व के अव्यवस्थित कण

कि लौट आएँगी तुम्हारी निर्दोश आँखे

तुम्हारे स्नेह-स्वरों की अनुगूँज लिए

वाह अनुपम , अप्रतिम सृजन सर ... अंतर्मन के भावों का बड़ी ही कोमलता के साथ चित्रण हुआ है। ... इस मन मुग्ध करती प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on January 18, 2018 at 11:49am

वाह! वाह!! बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब !! पढ़कर मज़ा आ गया ऐसे मखमली ख़्यालों को । हार्दिक बधाई स्वीकार करें  आदरणीय विजय निकोर जी ।

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