For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

बह्र- मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन

रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।
वो दिल गई उजाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

इज़हारे इश्क जो किया तो उसने गाल पर,
मारे हैं ताड़ ताड़ बताओ मैं क्या करूँ।

पल्लू से उसके फिर से मैं बँध जाऊँ दोस्तो,
कोई नहीं जुगाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

क्या दिन थे वो हँसीन कभी छत पे राह में
होती थी छेड़छाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मेरे खिलाफ उसने कटा दी एफआईआर,
जाना है अब तिहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

तन्हा हूँ और सिर्फ है तन्हाई मेरे साथ,
गायब है भीड़भाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

उस बेवफा की याद में रोता हूँ रात दिन,
अब मारकर दहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

आया खराब वक्त तो कमबख्त वक्त ने,
मुझको दिया पछाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मैंने तो तेरे इश्क में सब कुछ लुटा दिया,
गिरवीं है माँस हाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

हड़तालियों ने खौफ से अपने ही आप जब,
तम्बू लिया उखाड़ बताओ मैं क्या करूँ

आया जो रात देर से बीवी ने क्लास ली,
जमकर पड़ी लताड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1301

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:46pm

आदरणीय अफरोज सर मिसरा बह्र में है। तख्ती लिखने के अनुसार नहीं की जाती है। हम जैसा पढ़ते हैं हमारे कान जैसा सुनते हैं उसी अनुसार बह्र का निर्धारण होता है। आप का बहुत बहुत शुक्रिया टीप्पणी करने के लिये।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:40pm

आदरणीय उस्मानी साहब बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल सराहना के लिये।

Comment by Ajay Tiwari on December 4, 2017 at 3:47pm

आदरणीय राम अवध जी,

ज़िन्दगी में हास्य भी ज़रूरी है. और इस ज़रुरत को आपकी ये ग़ज़ल बेहतर तरीके से पूरा करती है. हार्दिक बधाईयाँ.

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 4, 2017 at 11:49am

आ राम अवध विश्वकर्मा जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है पर तकनिकी पक्ष पर आ समर कबीर साहिब की टिपण्णी  से मुझे भी सिखने को मिली \ सादर नमन  

Comment by नाथ सोनांचली on December 3, 2017 at 3:50pm
आद0 राम अवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास किया है आपने,शायद रदीफ़ का चयन और उत्तम होता तो गजलियत निखर जाती। शेष आद0 समर साहब कह चुके हैं।। इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई निवेदित है।सादर
Comment by Manoj kumar shrivastava on December 3, 2017 at 1:32pm

आदरणीय विश्वकर्मा जी बहुत ही अच्छी रचना है, बधई स्वीकार करें।

Comment by Mohammed Arif on December 3, 2017 at 7:40am
आदरणी राम अवध जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों का गंभीरता से संज्ञान लें ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on December 2, 2017 at 10:18pm
जनाब राम अवध जी आदाब,इस ग़ज़ल की रदीफ़ 'बताओ मैं क्या करूँ'एक सवाल है जो हर शैर में आप पूछ रहे हैं,जैसे मिसाल के तौर पर 'अब मारकर दहाड़''जमकर पड़ी लताड़'ये आप ऐसे प्रश्न पूछ रहे हैं,जिनका कोई क्या जवाब दे सकता है,और इसके कारण ग़ज़ल अपनी ग़ज़लियात खोकर हास्य ग़ज़ल हो गई है,और हास्य भी ऐसा जिस पर मुस्कुराना भी मुश्किल है,मेरा मश्विरा है, संजीदा ग़ज़लें कहें जो आप बहुत अच्छी कहते हैं,आपकी पिछली ग़ज़ल भी इन्हीं क़वाफ़ी पर मबनी थी,ग़ज़ल का मिज़ाज बहुत नाज़ुक होता है,और वो इस तरह के शब्द बर्दाश्त नहीं कर पाती,इसका ख़ास ख़याल रखना चाहिए,उम्मीद है आप मेरा इशारा समझ गए होंगे?
नवें शैर में शुतरगुर्बा दोष है ।
Comment by Afroz 'sahr' on December 2, 2017 at 9:30pm
आदरणीय राम अवध जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको
"मेंरे ख़िलाफ़ उसने कटा दी एफआईआर" ये मिसरा लय में नहीं है,,,,देखिएगा
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 2, 2017 at 8:52pm
बेहतरीन काफ़िओं के साथ मज़ेदार किंतु विचारोत्तेजक ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब राम अवध विश्वकर्मा जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service