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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा - सलीम रज़ा रीवा

2122 1122 1122 22 

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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा
भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा   
-
जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले 
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना होगा 
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जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी
फूल गुलशन में कोई  ऐसा खिलाना होगा
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मैं जहाँ छोड़ के आ जाऊंगा तेरी ख़ातिर 
शर्त ये है कि मेरा साथ निभाना होगा 
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दिल के रिश्तों को अगर प्यार से जोड़ा जाए
एक बंधन में बँधा सारा ज़माना होगा
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कोई प्यारी सी ग़ज़ल कहना अगर चाहो तो 
इश्क़ में डूबे ख़्यालात को लाना होगा
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चाहते हो जो मिटे सब के दिलों से नफ़रत
दुश्मनों को भी रज़ा दोस्त बनाना होगा
-

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 10:33pm
आदरणीय गुरुप्रीत सिंह जी ,
ग़ज़ल पर आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया अदा कर रहा हूं.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 10:31pm
आदरणीय अलोक जी,
आपकी महब्बत सलामत रहे,
आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 10:30pm
आदरणीय अजय तिवारी जी,
आपकी महब्बत से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, आ. भंडारी जी के ग़ज़ल में आपकी दलील से बहुत कुछ सीखने को मिला. मैंने आ. भंडारी जी के पोस्ट में लिखा भी था. आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 10:27pm
जनाब अफरोज साहब,
ग़ज़ल में आपके मशविरे के मुताबिक़ तब्दीली कर दी गई है, आपकी महब्बत सलामत रहे दिल से शुक्रिया,
Comment by Alok Rawat on November 15, 2017 at 3:17pm

जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले 
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना होगा 

आदरणीय  सलीम साहब बहुत अच्छी  ग़ज़ल हुई है।  मुबारकबाद। ये शेर वाक़ई बहुत अच्छा है। 

Comment by Ajay Tiwari on November 15, 2017 at 2:01pm

आदरणीय सलीम साहब,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

आदरणीय अफरोज साहब का सुझाव अच्छा है लेकिन उसके लिए मक्ते के ऊला में 'कि' की जगह 'जो' रखना होगा.

सादर 

Comment by Afroz 'sahr' on November 14, 2017 at 1:57pm
बहुत ख़ूबसुरत ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बधाई जनाब सलीम रज़ा साहिब,,,
मक्ते का सानी मिसरा यूँ भी किया जा सकता है।
"दुश्मनों को भी रज़ा दोस्त बनाना होगा",,,,,,,सादर,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 1:04pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2017 at 12:31pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाजिर है बहुत बहुत मुबारक 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 14, 2017 at 11:00am

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा रीवा साहब जी।आदाब।बेहतरीन गज़ल।

चाहते हो कि मिटे सब के दिलों से नफ़रत
फिर तो दुश्मन को रज़ा दोस्त बनाना होगा

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