For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की-तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)
.
तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी
तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.
.
जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा
शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी. 
. `    
चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में
बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.
.
साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,     
बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.
.
हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में
अमुआ पे चीखती इक कोयल में रात काटी.
.
माज़ी की ख़ाक में मैं हर शब् मिला के आँसू
हर सुब्ह सोचता हूँ दलदल में रात काटी.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 889

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 8, 2017 at 4:55pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र नाथ जी 

Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2017 at 7:48am
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया अशआर से सजी बेहतरीन ग़ज़ल, शैर दर शैर दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़बूल फरमायें।सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 7, 2017 at 11:35am

शुक्रिया आ. सलीम रज़ा साहब 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 9:54pm

जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,बढ़िया ग़ज़ल,बधाई स्वीकार करें ।

मेरी ग़ज़ल में भी आपकी नज़रे इनायत चाहता हूँ  ,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 6:35pm

धन्यवाद आ. तस्दीक़ साहब...मैंने पहले ही लिखा है कि मुझे अरकान आदि की समझ नहीं है ..लय जैसा निर्देशित करती है वैसा रचता हूँ...
अरकान यूँ लिखे जायं या अलग ढंग से..इससे क्या रचना की लय पर असर होगा?
OBO में अरकान  लिखने की बंदिश है इसलिए जैसे तैसे मात्रक्रम लिख देता हूँ... फिर भी आपकी जानकारी उपयोगी है..
सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 6:23pm
जनाब नीलेश नूर साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।
एक बात जानकारी के हिसाब से शेयर कर रहा हूँ ,आपने जो अरकान लिखे हैं वो यूँ हैं (मुसतफअलुन-फऊलन -मुसतफअलुन -फऊलन ),2212-122-2212-122,मगर यह बह्र किताबों में नज़र नहीं आती है ,जनाब बासुदेव साहिब की हिंदी वाली ग़ज़ल में भी इस पर बहुत चर्चा हुई है । जो बह्र चलन में है वो है (मफऊल-फ़ाइलातुन-मफऊल -फ़ाइलातुन),221-2122-221-2122
सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2017 at 3:44pm
समझ गया आदरणीय
अमुआ पे चीखती इक कोयल...में रात काटी
अलग अलग पढ़ने की जरुरत है..सादर धन्यवाद
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 3:34pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी ....
पंक्ति वैसे तो अपना मतलब ख़ुद  स्पष्ट कर रही है फिर भी ....अगर कभी रात में कोयल के कूकने से नींद  खुल जाए और फिर न लगे तो शायद practically समझ पायेंगे ..
सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2017 at 3:31pm
आदरणीय नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई..
अमुआ पे चीखती इक कोयल में रात काटी...माफ़ कीजिये ये पंक्ति मेरी समझ में नहीं आ रही। थोड़ी बात साफ कर दें तो आसानी होगी...सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 8:08am

शुक्रिया आ. राज़ साहब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service