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ख़्यालों में गिरफ़्तार

गम्भीर   उदास

अपना सिर टेक कर

इ-त-नी पास

तुम इतनी पास

तो कभी नहीं बैठती थी

फिर आज...?

मिलने पर 

न स्वागत

न शिकायत

न कोई बात

अपने में ही सोचती-सी ठहरी

धड़कन की खलबली में भी

तुम इतनी आत्मीय ...

मेरे बालों की अव्यवस्था को ठेलती

कभी शाम के मौन में  शाम की

निस्तब्धता को पढ़ती

शांत पलकें, अब अलंकार-सी

जागती-सी सोचती, कुछ खोजती

पूछती हैं कोई शरारत भरा सवाल

मेरी आँखों से मेरी आँखों में, ..बस

कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी

शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास

आसमान भी अब बिना सरहद का लगता

हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो

कहता है एक बात, एक बात कहता है

स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम

आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो

                  ----------

-- विजय निकोर

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on September 26, 2017 at 5:18pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,सुंदर अहसासों की पावन बगिया में अच्छी सैर कराई । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2017 at 4:31pm

भावपूर्ण रचना | हार्दिक बधाई इस रचना के लिए आदरणीय विजय निकोरे जी | 

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