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एक दुखता फोड़ा ---- अमृता प्रीतम जी संस्मरण

३१ अगस्त... प्रिय अमृता प्रीतम जी का पावन जन्म-दिवस। बहुत ही याद आई, मेरे खयालों में तैरती बीते सालों की हवा लौट आई।

सन १९६४ ... अमृता प्रीतम जी और मैं अभी कुछ ही दिन पहले मिले थे। तत्पश्चात टेलिफ़ोन पर उनसे बात हुई तो कुछ दार्श्निक सोच में थीं। बात बदलते हुए मौसम से ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव पर, और फिर झरने पर... जहाँ पानी नीचे गिरता है, गिर कर ऊपर नहीं उठता।  जानते हुए कि वह उस दिन तमस-भाव में थीं, मैं उनकी मानसिक स्थिति को सहलाना चाहता था। अत: उनकी सोच को मान देते हुए मैंने आदर से कहा, " हाँ, कुछ देर के लिए ही वह पानी नीचे रहता है, धूप आती है, पानी वाष्प बन कर फिर ऊपर आ जाता है। कहने लगीं, " हाँ,बादल बन कर बरसता है, फिर से नीचे गिर जाता है न !" मुझे लगा, यह दिन मेरे बस में नहीं था। उनका मनोबल ऊँचा उठाने का मेरा प्रयास असफ़ल था, और सच यह भी है कि मुझको डर भी लग रहा था कि कहीं मैं "छोटा मुँह, बड़ी बात न कर बैठूँ" ... क्यूँकि मैं तब मात्र २३ वर्ष का साधारण-सरल युवक ही तो था ... अमृता प्रीतम जी से तर्क करने की मेरी क्या हैसियत ! फिर भी हिम्मत करी। मेरी बात शायद पूरी नहीं बैठी, अत: कहने लगीं, " बै्ठ कर बात करेंगे।" यह सब बातें पंजाबी में हुई थीं जो मैंने यहाँ हिन्दी में बताईं। 

अगले सप्ताह ... बारिश के बाद एक भीगी शाम। यहाँ-वहाँ छोटे-छोटे तालब, कीचड़, और चलते-चलते फिसलने का भय। बस से उतर कर ज़मीन पर गिरे भीगे पत्तों पर पैर रख कर मैं संभल-संभल कर चल रहा था। फिर भी कुछ मिट्टी जूतों से चिपक गई। पास में हलवाई की दुकान पर पानी मांगा, जूते साफ़ किए, और लगभग १०-१५ मिनट और चल कर अमृता जी के घर (K-25 होज़ खास, नई दिल्ली) पहुँचा। 

मिलने पर हमारी बातों का माहोल इस बार बिलकुल सामान्य नहीं था। दार्शनिक तो उनको पहले कई बार देखा था, पर गत सप्ताह से अभी तक वही स्थिति ? जैसे कोई परिवर्तन न आया हो। थोड़ी-सी औपचारिक बातें, चाय और बिस्कुट ... अपने बेटे के career के विषय में कुछ परेशान थीं, कहने लगीं, (पंजाबी में) "कुड़ी ते आप सम्हाल लैगी, मुंडे दा पता नईं। थुवाडे तरां engineering कर लैंदा तां चंगा सी"। अनुवाद ..."बेटी तो खुद सम्हाल लेगी, बेटे का पता नहीं, आपकी तरह engineering कर लेता तो अच्छा था।"

चाय का प्याला मेरे हाथ में देते हुए अमृता जी ने खिड़की के बाहर देखा, और बहुत गंभीर हो गईं ... हाथ को, फिर उँगलियों को मलते हुए कुछ पल वह चुप, मैं चुप, वातावरण भारी हो रहा था। वातावरण इतना गंभीर कि जैसे हवा को चाकू से काट सकते हों।

मुझको लगा कि जैसे प्रिय अमृता जी के भीतर कोई फोड़ा दुखा हो।

... और फिर अचानक मुझसे एक बहुत कठिन सवाल। कहने लगीं ... (पंजाबी में) ... 

अमृता जी, " किस्मत नूँ बढ़ाण वाला कोण होंदा ए ?"  (हिन्दी .. किस्मत को बनाने वाला कौन होता है?")

हवा में अभी भी घबराहट। अमृता जी मेरी घबराहट को हमेशां झट पहचान लेती थीं, क्यूँकि मुझको अपनी भावनाओं को छिपाना कभी नहीं आया, आज ५२ वर्ष बाद भी अभी तक नहीं।

चुप्पी को तोड़ते हुए कहने लगीं, (पंजाबी) " ए सवाल मैं थुवाडे कोल ई खास पुछेया हे, मैंनु पता हे कि तुसीं एदा जवाब ordinary surface level ते नईं देओगे" ---- हिन्दी .. " यह सवाल मैंने आपसे ही खास पूछा है, मुझे पता है कि आप इसका जवाब ordinary surface level  पर नहीं देंगे।"

एक लम्बी साँस ...

अमृता जी, (पंजाबी) " मेरे novels दे characters मेरे सफ़णा विच वापस आंदे नें ते मेरे कोल एहो ई सवाल बार-बार पुछदे ने"। हिन्दी " मेरे novels के characters मेरे सपनों में वापस आते हैं और मुझसे यही सवाल बार-बार पूछते हैं"।

उनका उपरोक्त संकेत उनके उपन्यास "एक थी अनीता" की ओर था जिसके पहले पन्ने पर उन्होंने लिखा था, "नीना मेरे उपन्यास की नायका है । एक दिन वह मेरे सपने में आई, और मेरी ........."

अमृता जी," विजय जी, एस लई थुवाडे कोल ऐ सवाल पुछया ए".....  हिन्दी " विजय जी,इसीलिए आपसे यह सवाल पूछा है।"

मैं (विजय), " पैले तां, तुसीं ऐ सवाल मेरे कोल पुछ के मैंनू बड़ी इज़्ज़त दिती ए। मैं इसदे जवाब दे काबिल नईं हेगा। किस्मत कोण बणादा ए, ऐदा जवाब तां आसान  नईं हैगा, क्यूँकि ऐदा जवाब हर किसे दी mental growth ते depend करदा ए। ... ऐ  mental growth बतेरे factors ते depend करदी ए... बचपन ते, family background ते, education ते, spiritual growth ते ..."

हिन्दी " पहले तो आपने यह सवाल मुझसे पूछ कर मुझको बड़ा मान दिया है। मैं इस सवाल के जवाब के काबिल नहीं हूँ। इस सवाल का जवाब आसान नहीं है, क्यूंकि इसका जवाब हर किसी की mental growth पर depend करता है। यह mental growth  कई factors पर depend करती है ... बचपन पर, family background पर, education पर, spiritual growth पर..."

अमृता जी, "ओ किवें?" ---- हिन्दी "वह कैसे?"

विजय, " मतलब कि रब किसे इनसान वास्ते उते असमान ते ए, या ओदे दिल दे अन्दर ए । असीं पूजा करदे आँ ते रब नूँ उते असमान विच वेखदे आँ, फ़िर होलि-होलि लगदा ए कि ओ रब बार नईं हेगा, ओ साडे अन्दर ई ऐ। पैले किस्म दे लोकां लई शायद किस्मत रब बढ़ांदा ए, ते दूजे आपणी किस्मत आप बढ़ांदे होन गे। ए दूजे लोक स्वामी विवेकानन्द जिवें होंदे ने ...ताईँ उनाने आपड़ें जाण दा दिन ते वक्त आप announce कीता सी।"

हिन्दी--- विजय " मतलब कि भगवान किसी मानव के लिए ऊपर आसमान में है, या उसके मन में विराजा है। हम पूजा करते हैं तो भगवान को ऊपर आसमान में देखते हैं, और फिर धीरे-धीरे लगता है कि वह भगवान बाहर नहीं हैं, हमारे भीतर ही हैं। पहले प्रकार के लोगों की किस्मत शायद  भगवान बनाते हैं, और दूसरे अपनी किस्मत खुद बनाते होंगे। यह दूसरे लोग स्वामी विवेकानन्द जैसे होते हैं  ... तभी तो उन्होंने अपने जाने का समय स्वयं announce किया था।

अमृता जी, हँसते-हँसते," ए जवाब ते बड़ा ई गूड़ ए... एनू समझण लई high mental state चाइदिए ए.। Generally लोकां लई किस्मत रब ई देंदे ने।"

              --- हिन्दी (हँसते-हँसते) " यह जवाब तो बहुत ही गूढ़ है... इसको समझने के लिए high mental state चाहिए ।"

विजय, " और जैसे मैंने कहा, यह सवाल इतना कठिन है कि मैं नहीं जानता, मैं कहाँ तक ठीक हूँ या गलत हूँ।

ऐसी ही कुछ और बातें हुई और शाम ढलने लगी। अमृता जी से मिलना अच्छा लगा। इस बार मेरे लिए यह बातें कठिन थीं, फिर भी अच्छी लगीं।

यदि यह मेरी परीक्षा थी तो पता नहीं मैं पास हुआ कि नहीं। कुछ और इधर-उधर की बातें, उनकी पुस्तकों के बारे में , मेरी रचनाओं के बारे में ...और फिर से मिलने की बात करके मैं घर लौट आया, पर सारा रास्ता मैं उनके दुखते फोड़े को ही सोचता रहा, मुझको वह भीतर ही भीतर चुभता रहा ... मन दुखी था कि चाह कर भी मैं कुछ कर न सका।

अमॄता जी की स्मृति में उनकी पावन आत्मा को सादर नमन।

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by vijay nikore on September 15, 2017 at 9:19pm

आदरणीय भाई समर जी,

आपने विस्तार में अमृता प्रीतम जी पर अपने विचार दिए, पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ। उनका और साहिर का और इम्रोज़ का किस्सा मानवीय रिश्तों पर एक अनोखी दृष्टि हैं।

// उनके दिल के फोड़े का ज़िक्र करके आपने इन यादों को जगा दिया,बहुत उम्दा तहरीर लिखी आपने एक महान लेखिका के बारे में//

आप मेरे लिखे को इतना मान देते हैं, भाई मैं इसी से धनी हूँ और आपका आभारी हूँ। 

Comment by Samar kabeer on September 6, 2017 at 3:44pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,जो लोग दार्शनिक होते हैं उनकी और हमारी सोच में ज़मीन आसमान जितना अंतर होता है, उनके सवालों में भी परत दर परत सवाल छुपे होते हैं,उनका जवाब देना वाक़ई बहुत मुश्किल होता है ।
मुझे भी उनके बारे में जानने की बहुत दिलचस्पी रही है,और उन्हें पढ़ता रहा हूँ,खासकर उनकी किताब 'रसीदी टिकिट'मेरी पसन्दीदा किताब रही है,उनके साक्षात्कार भी बहुत दिलचस्पी से पढ़े हैं ।
'साहिर'लुध्यानवी से उनका पवित्र प्रेम आज भी याद आता है,'साहिर'के देहांत पर उन्होंने लिखा था,'साहिर मेरे घर आते और घण्टों चुपचाप बैठे सिगरेट पीते रहते,और फिर ख़मोशी से बिना बात किये ही चले जाते,उनके जाने के बाद मैं उनके सिगरेट के टुकड़े पीती थी'।
उनकी शादी साहिर की ज़िंदगी में ही हो गई थी,और ये अजब इत्तिफ़ाक़ था कि उनके बेटे की शक्ल हूबहू साहिर से मिलती थी,कुछ लोग इस कारण से उसे साहिर का बेटा समझते थे,मगर ये गलत बात थी,एक दिन उनके पति की मौजूदगी में उनके बेटे ने उनसे सवाल कर दिया कि,'माँ ये बताओ क्या में साहिर अंकल का बेटा हूँ?'अमृता जी ने ठंडी साँस लेते हुए जवाब दिया था'काश तुम साहिर के बेटे होते'उनके पति को भी उनके और साहिर के पवित्र प्रेम के बारे में पता था ।
ऐसे लोग दुनिया में कम ही पैदा होते हैं ।
उनके दिल के फोड़े का ज़िक्र करके आपने इन यादों को जगा दिया,बहुत उम्दा तहरीर लिखी आपने एक महान लेखिका के बारे में,और में आपको क़िस्मत का धनी कहूंगा कि आपको ऐसी शख़्सियत से मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त हुआ,दिल से ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए इस संस्मरण को हमसे साझा करने के लिए ।
Comment by vijay nikore on September 5, 2017 at 5:17pm

// महान लेखिका अमृता प्रीतम के साथ जुड़े हुए अपने अनुभवों को आपने बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया है//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on September 5, 2017 at 5:14pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय फूल सिंह जी

Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2017 at 4:30pm

आ. विजय जी, महान लेखिका अमृता प्रीतम के साथ जुड़े हुए अपने अनुभवों को आपने बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया है. पढ़ कर हार्दिक प्रसन्नता हुई. इस संस्मरण को साझा करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर.

Comment by vijay nikore on September 4, 2017 at 8:26pm

//संस्मरण बहुत जी जीवंत लिखा है आपने , ऐसा कि वार्तालाप मे खुद भी शामिल हैं ऐसा लगता है .. //

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2017 at 3:03pm

हुत ही सुंदर, बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2017 at 6:55pm

आदरनीय बड़े भाई विजय की ,  संस्मरण बहुत जी जीवंत लिखा है आपने , ऐसा कि वार्तालाप मे खुद भी शामिल हैं ऐसा लगता है .. हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by vijay nikore on September 2, 2017 at 12:25am

//आपकी इस प्रस्तुति पर मैं फिर वापस आऊंगा//

जी बिलकुल ,आदरणीय भाई समर कबीर जी। आपके सुविचार की प्रतीक्षा रहेगी। सादर।

Comment by vijay nikore on September 2, 2017 at 12:04am

//बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण संस्मरण आदरणीय विजय जी | सादर धन्यवाद् आपको , जो इतने सुंदर पल आपने साझा किये हैं | इतनी महान हस्ती से आपने हमें भी मिलवा दिया //

इस सराहना से मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया बहन कल्पना जी।

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