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रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई------इस्लाह के लिए ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22
रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई।
आँगन में दीवार खींचते भाई भाई।।

वाह रुपये खूब तुम्हारी भी है माया।
पुत्र बसा परदेश गाँव में बाबू- माई।।

कलयुग कैसी है ये तेरी काली छाया
साथ नहीं देती है खुद की ही परछाई।।

नातेदारी मृग मरीचिका में उलझी है
जानें कितनी लाश गिरेगी रे'त में भाई।।

पंकज बैठा लिये तराजू आओ लोगों
नाप-जोख कर भाव लगाकर करो मिताई।।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Gurpreet Singh jammu on July 12, 2017 at 10:01pm
नमस्कार आदरणीय पंकज जी..अच्छी ग़ज़ल कही है आपने..तीसरा शेर बहुत पसंद आया...
मक्ते में मिताई का अर्थ नहीं समझ पाया
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 8:24pm

बढ़िया ग़ज़ल है आ. पंकज जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2017 at 10:33am
आ.पंकज भाई अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 11, 2017 at 7:38pm
आदरणीय पंकज जी बहुत ही सार्थक ग़ज़ल कही है आपने.. सादर
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:16pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, सुझाये गये बिंदुओं पर पुनप्रयास शीघ्र ही होगा।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:15pm
आदरणीय रवि सर सादर प्रणाम, आपके सुझाव के अनुरूप प्रयास होगा।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:15pm
आदरणीय रवि सर सादर प्रणाम, आपके सुझाव के अनुरूप प्रयास होगा।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:14pm
आदरणीय सुशील शरण सर सादर अभिवादन और हार्दिक आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:12pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर बहुत बहुत आभार, सादर अभिवादन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 7:12pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर सादर आभार

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