For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मापनी २१२ २१२ २१२ २१२ 

रात दिन बस यही सोचता रह गया

पास आकर भी क्यों फासला रह गया  

 

पत्थरों से लड़ाई कहाँ तक करे,

तोप का मुँह सिला का सिला रह गया

 

चढ़ गयीं परतें मुखोटे पे’ उनके कई,

बेखबर देखता आइना रह  गया

 

वज्न  वे रोज अपना बढ़ाते रहे,

और भीतर हृदय खोखला रह गया

 

सामना जब हुआ देखते रह गए,

प्यार अन्दर छुपा का छुपा रह गया

 "मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 10:19pm

ह्रदय से आभार आदरणीय Mahendra Kumar जी आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 8:56pm

ह्रदय से आभार आदरणीय Mahendra Kumar जी आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 8:55pm

आभार आदरणीय Sushil Sarna जी का ह्रदय से आभार 

Comment by Mahendra Kumar on June 7, 2017 at 8:03pm

आ. बसंत कुमार जी, उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए. सादर.

 

Comment by Sushil Sarna on June 7, 2017 at 4:28pm

चढ़ गयीं परतें मुखोटे पे’ उनके कई,
बेखबर देखता आइना रह गया
वाह आदरणीय बसंत कुमार जी वाह। ... बहुत खूबसूरत अशआर कहे हैं आपने। हार्दिक बधाई इस दिलकश ग़ज़ल के लिए।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 3:34pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी , हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 3:33pm

हौसला अफजाई एवं त्रुटि इंगित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय  Ravi Shukla जी अब देखें

बह्र फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन है 

आदमी के मुखोटे पे परतें कई,

बेखबर देखता आइना रह  गया

 

Comment by Ravi Shukla on June 7, 2017 at 2:06pm

आदरणीय बसंत जी बहुत बढि़या गजल कही है आपने शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करें । गजल से पहल बह्र लिखने में शायद भूल हो गई है । इसकी बहर फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन है । तीसरे शे का उला मिसरा फिर से देख लें बहर में नही है । सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 7, 2017 at 11:29am
आदरणीय बसन्त जी,हारदिक बधाई स्वीकारें इस उम्दा गजल के लिए!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service