For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: उसको ये समझाना है

(बह्र--22/22/22/2)
उसको ये समझाना है ,
इक दिन सबको जाना है ।

.
हँस के रोकर कैसे भी ,
जीवन क़र्ज़ चुकाना है ।

.

देखो, भटका फिरता वो ,
वापस घर तो आना है ।

.

अच्छी सच्ची राहें हैं
सबको ये बतलाना है ।

.

उसके संगी-साथी को ,
मिलकर हाथ बढ़ाना है ।

.

आशा की किरणों वाला ,
फिर से दीप जलाना है ।

.
मौलिक एवं आप्रकाशित ।

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 9:34am

सहज सरल शानदार अभिव्यक्ति 

Comment by Mohammed Arif on May 4, 2017 at 11:37pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया । अपका सुझाव बेहतर है । मुझे स्वीकार है ।
Comment by Mahendra Kumar on May 4, 2017 at 8:21pm

आ० मोहम्मद आरिफ जी, छोटी बह्र में बहुत बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए

//हँस के रोकर कैसे भी// क्या इस मिसरे को "हँस के रो के" या "हँस कर रो कर" किया जा सकता है? देख लीजिएगा। सादर। 

Comment by Mohammed Arif on May 3, 2017 at 5:57pm
बहुत-बहुत आभार और शुक्रिया आदरणीय हेमंत कुमार जी ।
Comment by Hemant kumar on May 3, 2017 at 2:26pm
आदरणीय आरिफ सर इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाईयाँ कुबूल करें।
सादर...
Comment by Mohammed Arif on May 3, 2017 at 1:30pm
हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला साहब ।
Comment by Ravi Shukla on May 3, 2017 at 11:20am

आदरणीय मोहम्‍म्‍द आरिफ साहब गजल पर आपको प्रयास करता देख का खुशी हुई बहुत बहुत मुबारक बाद इसके लिये

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 11:04pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय नीलेश "नूर" साहब । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2017 at 9:23pm

बहुत खूब आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब.... ग़ज़ल के लिये बधाई  

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 8:24pm
आदरणीय सुशील सरना जी ग़ज़ल पर अपनी प्रतिक्रिया देने और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service