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ग़ज़ल -- कभी जीत है कभी हार है ( दिनेश कुमार )

11212--11212

वो कलंदरों में शुमार है
ग़म-ए-ज़ीस्त से उसे प्यार है

तेरी हाँ नहीं पे ऐ जान-ए-जाँ
मेरी ज़िन्दगी का मदार है

मेरे बाग़-ए-दिल के नसीब में
फ़क़त इन्तज़ार-ए-बहार है

ग़म-ए-आशिक़ी से जो पूछिये
ये जहां भी उजड़ा दयार है

जिसे ताज कहता है ये जहां
वो हक़ीक़तन तो मज़ार है

ये अजब नहीं कि जुनूने-इश्क़
सर-ए-दार था सर-ए-दार है

मैं जो हक़-हलाल की रह पे हूँ
मुझे ख़्वाब में भी क़रार है

ये बिसात-ए-दह्र की बाज़ियाँ
कभी जीत है कभी हार है

मेरी धड़कनें भी हैं बह्र में
मुझे शायरी का ख़ुमार है

मौलिक व अप्रकाशित।

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Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:27pm

आदरणीय दिनेश जी अच्‍छी गजल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 20, 2017 at 10:41am

आदरणीय दिनेश जी बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने,,,और ये बह्र भी बहुत प्यारी लगी 

मेरी धड़कनें भी हैं बह्र में
मुझे शायरी का ख़ुमार है
वाकई आपकी ग़ज़लें इस बात का सुबूत हैं
"बिसात-ए-दह्र" का अर्थ बताइएगा आदरणीय

Comment by नाथ सोनांचली on April 20, 2017 at 8:49am
आद0 दिनेश कुमार दानिश जी सादर अभिवादन, उम्दा गजल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 19, 2017 at 8:32pm
वाह आदरणीय जबरजस्त ग़ज़ल हुई..मजा आ गया..सादर
Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 5:46pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'जी आदाब,बहुत उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on April 19, 2017 at 9:39am
आदरणीय दिनेश जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल । शे'र दर शे'र मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 8:38pm

वाह वाह वाह आ. दिनेश भाई ..
दो रुक्नी ग़ज़ल में ग़ज़ब जादू डाला आपने ,,,
बधाई 

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