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तरही गजल
2122 2122 212

काफ़िया हमको मिला *अम* क्या करें
लाज़िमी कहनी ग़ज़ल हम क्या करें

सब दिवाने हैं दिखावे के यहाँ
और' हुनर के दाम हैं कम क्या करें?

रौशनी ने दी है दस्तक देख लो
पर खड़ा है फिर भी ये तम क्या करें

बुलबुलों ने छोड़े जब से घोंसले
टहनियों की आँख हैं नम क्या करें

पास है जो वो भी तो अपना नहीं
*जाने वाली चीज का गम क्या करें

बैठकर सब साथ गम थे बाँटते
सिलसिला वो अब गया थम क्या करें

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 18, 2017 at 6:50pm
आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी सादर नमन!अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया।
Comment by Ravi Shukla on April 18, 2017 at 2:33pm

आदरणीय सतविन्‍द्र कुमार जी आपकी भी तरही गजल बढि़या हुई है मुशिकल को ही आपने मतला बना लिया नया प्रयोग अच्‍छा लगा । बधाई स्‍वीकार करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 12:02pm

बधाई आदरणीय..
समर सर ने विस्तार दे ही दिया है ..
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:21am
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 17, 2017 at 6:13pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'बिक रहा है बस वही जो दिख रहा
वो छुपाता है हुनर दम क्या करें '
सानी मिसरे में 'दम'शब्द का क्या अर्थ लिया है आपने ?

'बुलबुलों ने छोड़े ख़ाली घोंसले'
इस मिसरे में शिल्प कमज़ोर है, घोंसले तो बबूलों के जाने के बाद ख़ाली हुए न, फिर ख़ाली घोंसले ? मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'बुलबुलों ने छोड़े जब से घोंसले'
'साथ मिलकर हँस ग़मों को भूलते'
इस मिसरे में भी शिल्प कमज़ोर है, देखियेगा ।
Comment by Mohammed Arif on April 17, 2017 at 10:10am
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब, लाजवाब ग़ज़ल तरही ग़ज़ल का आगाज़ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय देंगे ।

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