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ग़ज़ल(जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा)

बह्र-- 2212 2212 2212 2212

जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा,
राहों में आए कष्ट जो सहते चलो तुम सर्वदा।

अनजान सी राहें तेरी मंजिल कहीं दिखती नहीं,
काँटों भरी इस राह में हँसते चलो तुम सर्वदा।

बीते हुए से सीख लो आयेगा उस को थाम लो,
मुड़ के कभी देखो नहीं बढ़ते चलो तुम सर्वदा।

बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे,
जीवन में ठहरो मत कभी बहते चलो तुम सर्वदा।

मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रही,
दुखियों के मन मन्दिर में रह बसते चलो तुम सर्वदा।

इस जिंदगी के रास्ते आसाँ कभी होते नहीं,
तूफान में भी दीप से जलते चलो तुम सर्वदा।

जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे,
ऐसे इरादों को 'नमन' करते चलो तुम सर्वदा।

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 4, 2017 at 11:47am
आ0 नीलेश जी बहुत धन्यवाद। मतले में चलते और सहते में ते common हो जाने से वह रदीफ़ का ही हिस्सा हो जाएगा इस बात पर तो बिल्कुल ही ध्यान नहीं गया जिसका खेद है।
अब 'ए' काफ़िया बरकरार रखने के लिए यदि मतले का सानी मिसरा ऐसे लिखें तो
राहों में जो भी कष्ट हैं सहके चलो तुम सर्वदा।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 4, 2017 at 7:02am

आ. बासुदेव जी ...
मतले में चलते और सहते में मूल शब्द चल और सह में काफ़िया नहीं है ...अत: ईता दोष है ..
सादर  

Comment by नाथ सोनांचली on April 4, 2017 at 4:41am
आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी सादर अभिवादन, बहुतउम्दा हौसला बढ़ाने वाली ग़ज़ल । शेर दर शे दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल करें । शैल्पिक सौष्ठव के बारे में गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Mohammed Arif on April 3, 2017 at 11:15pm
आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी आदाब, बहुत शानदार हौसला बढ़ाने वाली ग़ज़ल । शेर दर शे दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल करें । शैल्पिक सौष्ठव के बारे में गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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