For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रियल एंग्री बर्ड (लघुकथा)राहिला

"कुछ भी कर लो इनके लिए ,लेकिन इन्हें शिकायतें ही शिकायतें हैं हर वक़्त ।किसी काम से संतुष्ट ही नहीं होती।परेशान आ गयी हूँ जानकी!"
"इसमें परेशानी जैसी तो कोई बात नज़र नहीं आती ।तू काम किया कर ढंग से।ये हलवे में मिठास जरा कम है।"
वह इत्मीनान के साथ हलवे की कटोरी साफ़ करते हुए बोली।
" मज़ाक मत कर,1मैं सीरियस हूँ ।
"मज़ाक..!वह तो मैं भी नहीं कर रही हूँ।अलबत्ता तू जरूर बेतुकी समस्या का रोना लेकर इस हसीन दोपहर का सत्यानाश कर रहीं है?"उसने मुंह में चिप्स डालते हुए कहा।
"अच्छा...! मेरा यहाँ एक पल सांस लेना दूभर हो रहा है और तुझे मेरी बातें बेतुकी लग रही है। पहले तेरे दीदे खाने से तो हटें ,तब तो तू मेरी बातों पर ध्यान देगी ।ले खा..., ये चिवड़ा भी खा ..,चटोरी कहीं की ।रत्ती भर नहीं बदली इतने सालों में।"
उसने चिड़ कर चिवड़े की पूरी की पूरी तश्तरी उसे थमा दी। और उसने झट से ले ली।
"तो तू ही बता तेरी इस समस्या का क्या समाधान दूँ?ना तू उनसे अलग हो सकती है। ना वह तुझसे ,दोनों एक दूसरे की एकलौती सास ,बहू जो हो। और ये बुढ़ापा ...,ये तो आता ही है कुड़कुड़ करने के लिए है ।देख लेना तू भी करेगी। "उसने फिर चुटकी ली।

"तू रहने दे मेरे बारे में भविष्यवाणी ।अगर तेरी सास ऐसी होती ना, तो तुझे पता चलता ।"वह उसे लगभग कोसने के अंदाज में बोली।
"है...!,मेरी भी ऐसी ही अलबेली सास है।लेकिन मेरे लिए वह मेरी सास नहीं, चैलेंज है चैलेंज। और तू तो जानती है मुझे चैलेंज लेना कितना पसंद था और आज भी है।था तो तुझे भी? वह हाथ मटका के बोली। फिर मैंने हारना नहीं सीखा ।मज़ा तो ऐसे लोगों के साथ रहने में है ,जिनको आसानी से शीशे में ना उतरा जा सके डिअर!"लगातार मुँह में कुछ ना कुछ चबाते हुये उसने तकिया पीठ से लगाते हुए कहा।
"तू तो पक्का पागल हो गयी है।"
"हो जाती,अगर तेरी तरह रोती। देख ,सभी जिंदगी में कोई न कोई ऐसा इन्सान जरूर होता है ,जिसके साथ हमें हर हाल में सामंजस्य बैठना ही होता है ।मैंने हमेशा उनको अपनी माँ के स्थान पर रखा,लेकिन मैं उनकी बेटी कभी नहीं बन पायी ।तो बस.. जब किसी को बदलना नामुमकिन हो ,तो खुद को बदल लो।अब तो मज़ा आने लगा है। वह डाल ,डाल मैं पात ,पात।"
"फिर तो उन्हें तुझसे बहुत शिकायत होंगी ?"
"मौका ही नहीं देती ....,लेकिन जिसको आदत हो कमियां निकालने की वह बाज़ नहीं आते।"
"ये क्या बात हुयी ?"
"बात ऐसी है डिअर कि, मैं एक्सपर्ट होती जा रही हूँ काम में और गेम में भी ।"
"गेम...,कौन सा गेम ?"
" दी एंग्री बर्ड! हा.. हा ..हा ,बी पॉजिटिव यार! ,आई लव चिल स्प्राइट,चियर्स ।आज भी उसका वही चिर परिचित कालेज वाला अंदाज और वही खिलखिलाहट।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 11:49am

वाह्ह्ह ये सास बहु के झगडे ...इस मुद्दे को बड़ी ख़ूबसूरती से उभारा है लघु कथा में अंतिम पंक्तियों में निवारण का तरीका तो बेमिसाल है 

बहुत- बहुत  बधाई इस सुंदर लघु कथा पर |

Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 7:35am
आद0 राहिला जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा लघुकथा पर बधाई निवेदित हैं।
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:39pm
जनाब समर कबीर साहब! रचना को पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया। सादर।
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:39pm
जनाब सुशील साहब रचना को पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया। सादर।
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:38pm
जनाब आरिफ साहब !रचना को पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया। सादर।
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:38pm
जनाब मोहित सर जी! रचना को पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया। सादर।
Comment by Samar kabeer on March 28, 2017 at 9:45pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मैं जनाब आरिफ़ साहिब से सहमत हूँ ।
Comment by Sushil Sarna on March 28, 2017 at 3:01pm

जिंदगी में कोई न कोई ऐसा इन्सान जरूर होता है ,जिसके साथ हमें हर हाल में सामंजस्य बैठना ही होता है ।मैंने हमेशा उनको अपनी माँ के स्थान पर रखा,लेकिन मैं उनकी बेटी कभी नहीं बन पायी ।तो बस.. जब किसी को बदलना नामुमकिन हो ,तो खुद को बदल लो।... बहुत सुंदर आदरणीया राहिला जी  ... ये पंक्ति सारगर्भित है  , इसमें एक गहनता है  .... शीर्षक को सार्थक करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Mohammed Arif on March 28, 2017 at 12:03pm
आदरणीया राहिला जी आदाब, कथानक में कसावट है, एक बेहतरीन लघुकथा की श्रेणी से देखा जा सकता है, संवाद भी अच्छे । इस लघुकथा का सबसे अच्छा संदेश यही है कि हमें सामंजस्य के साथ निबाह करना चाहिए । तभी सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं । हाँ, कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ आसानी से देखी जा सकती है । आपको ढेरों मुबारकबाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service