For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया - ( गिरिराज )

221   2121   1221   212

मंज़र न जाने कौन उसे क्या दिखा गया

या आइना था, जो उसे पत्थर बना गया

 

तू भी तवाफ ए दश्त में चलता, ऐ शह’र ! तो   

कहता यही, सुकून मेरे दिल को आ गया

 

हँसने की कोशिशों से निकल आये अश्क़ क्यूँ

ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया

 

गिनते रहे वो रोटियाँ थाली में डाल कर

भूखा उसी समय ही जाँ अपनी लुटा गया

 

लाठी नुमा रहा था जो अंधे के साथ साथ    

पत्थर समझ के राह का, कोई हटा गया

 

वो बेवफाई आज भी जीती है ज़ेह्न में

गो ज़िन्दगी से कब का मेरी, बेवफ़ा गया

 

लिक्खा भी मेरा नाम तो वो रेत पर लिखा

झोंका हवा का देखिये उसको मिटा गया   

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 1164

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:05am

वाह वाह ..बहुत ख़ूब .....
हर शेर पर दाद लीजिये..
बधाई  

Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 6:30am
आद0 भाई गिरिराज जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने। शैर दर शैर दिली दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।

दूसरे शैर के सानी में ऐब ए तनाफुर तो नही देख लीजियेगा। इस बारे में स्पष्ट करियेगा ताकि हमारी भी जानकारी में वृद्धि हो सके। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 10:18pm

आदरनीय समर भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।

आपकी सलाह उचित है , मै वैसा ही सुधार कर लूँगा , आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 10:16pm

आदरनीय तस्दीक भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

आ. तकाबुले रदीफैन दोष है , उस शेर मे ,  मै जानता हूँ ... हटाने का प्रयास करूँगा , वैसे मै ज़रूरी नही समझता , फिर भी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 10:14pm

आदरनीय सुशील भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 10:13pm

आदरणीय आशुतोष भाई ,  हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

आदरणीय - तवाफ ए दश्त  --- जंगल का चक्कर लगाना , या जंगल घूमना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 10:10pm

आदरणीय मो. आरिफ भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Samar kabeer on March 7, 2017 at 9:19pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'वो बेवफाई आज भी जीती है ज़ह्न में
गो ज़िन्दगी से क़ब का मेरी बेवफ़ा गया'
इस शैर के ऊला मिसरे में'वो बेवफ़ाई'शब्द कुछ अधूरा सा लगता है,जबकि यहां 'उसकी बेवफ़ाई'होना चाहिये ,मेरे ख़याल से अगर ऊला मिसरा यूँ कहें तो ?:-
क्यों उसकी बेवफ़ाई अभी तक है ज़ह्न में
गो ज़िन्दगी से कब का मेरी बेवफ़ा गया"
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2017 at 8:04pm

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद के साथ
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---शेर 7 के उला मिसरे में एब- तक़ाबुल- रदीफेन है
लिक्खा भी मेरा नाम तो लिक्खा है रेत पर ---- देख लीजिएगा --सादर

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2017 at 7:27pm

लिक्खा भी मेरा नाम तो वो रेत पर लिखा
झोंका हवा का देखिये उसको मिटा गया

वाह आदरणीय गिरिराज भाई साहिब क्या दिलकश अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में। दिल से बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service