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सच ,लगने लगा पराया ...

सच ,लगने लगा पराया ...

न मेरा
आना झूठ था
न तेरा
जाना झूठ था
दूर जाने का मुझसे
बस बहाना
झूठ था

जीती रही
जिस शब् को
हकीकत मानकर
सहर की शरर पे सोया
वो
अफ़साना झूठ था

बादे सबा
में लिपटी
सदायें
यूँ तो आयी थीं
तेरे बाम से मगर
उसमें छुपा
हिज़्रे ग़म को
बहलाने का
तराना झूठ था

इक झूठ
तूने जिया
इक झूठ
मैंने जिया
न सच
तुझे भाया
न सच 
मैंने अपनाया
कैसी की
तूने मुहब्बत
झूठ
बन गया सच
और सच
लगने लगा पराया

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 10, 2017 at 2:04pm

आदरणीय Mohammed Arif  जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Mohammed Arif on January 10, 2017 at 9:47am
आदरणीय सुशील सरनाजी आदाब, सुंदर भावों का अंकन करने वाली कविता के लिए बधाई ! सादर ।
Comment by Sushil Sarna on January 9, 2017 at 1:10pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 5:28pm
बहुत ही सुन्दर और सशक्त कविता हुई
Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:29pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:28pm

आदरणीय आशुतोष जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:28pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपके द्वारा बताई गयी टंकण एवम तकनीकी त्रुटि को दुरुस्त कर मैं इसे पुनः पोस्ट कर रहा हूँ। आपने जिस स्नेह से सृजन को संवारा है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। मेरा सृजन आपके मार्गदर्शन का सदैव आभारी रहेगा। 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 12:02am

आदरणीय सुशील सरना सर, आपने झूठ शब्द के इर्द गिर्द बिम्ब आधारित बढ़िया कविता लिखी है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 7, 2017 at 5:08pm
आदरणीय सरना जी इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 3:19pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,एक शब्द को बुनियाद बनाकर अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।'जीती रही
जिस शब को
को हक़ीक़त मान कर'
'को को'की तकरार भली नहीं लगती ।
18वीं पंक्ति में "बाम"शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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