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तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

तरही गजल
बह्र:122 122 122 122
काफ़िया:अर
रदीफ़:देख लेना
---
गरीबों के दिल में है डर देख लेना
अमीरों की तिरछी नजर देख लेना।

नहीं तीरगी की हमें फ़िक्र कोई
नए हौंसलों की सहर देख लेना।

जरूरत नहीं है अभी बोलने की
खमोशी जो लाए ग़दर देख लेना।

मुहब्बत को मेरी भुला क्या सकेंगे?
*वो आएँगे थामे जिगर देख लेना।*

मेरा दर्द ही दर्द उनका बना है
मेरे अश्क उन गाल पर देख लेना।

सहारा बनोगे तभी फल वो देंगे
जरा खेत में भी शज़र देख लेना।

तुम्हें फैसलों से जो मिल जाए फुर्सत
व्यवस्था हुई है लचर देख लेना।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2017 at 8:13pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर,आपको प्रयास पसन्द आया ,यह सार्थक हुआ,सादर हार्दिक आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 4:57pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , तरही ग़ज़ल अच्छी कही है , गिरह भी अच्छी लगाई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 3, 2017 at 4:55pm
आदरणीय विजय निकोरे सर सादर नमन,प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 3, 2017 at 4:55pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी,आपकी पसन्दगी से प्रयास सार्थक हुआ।सादर हार्दिक आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 3, 2017 at 4:54pm
आदरणीय नरेन्द्रसिंह चौहान जी हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 3, 2017 at 4:53pm
आदरणीय महेंद्र जी पुनः आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 3, 2017 at 4:52pm
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन,मेरे निवेदन पर पुनः हाजिर होकर मश्वरा देने के लिए सादर हारदिक आभार।
Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:38am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल बनी है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सतविन्द्र जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 2, 2017 at 11:55pm

आदरणीय सतविन्द्र जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on January 2, 2017 at 7:24pm

सुन्दर रचना 

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