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बहुत बार जी चाहता है

बहुत बार जी चाहता है कुछ ऐसा- ऐसा 
की ये सब कुछ जो है अलग- विलग 
विसंगत असंगत अखरता वैसा -वैसा 
इस सब को मिटा कर  
जड़ मूल से हटा  कर 
धरा के सपाट माथे को नहला डालूँ 
रगड़ रगड़ कर  धो -धुला कर  
प्रचलित को पूर्णतया मिटा कर 
नई इबारत  खुदवा   डालूँ
श्रम बूंदों से  छलछलाएं समंदर 
 जगती संग  इन्ही से नहा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
इसी  से परिचालित हो सम्पूर्ण  धरा 
खोटा भी रहे   बस हो जाए खरा 
क्यों  हो मालिक कोई किसी का
क्यों हो कोई  किसी का गुलाम 
इंसान हो तो  केवल इंसान
क्यों  रहे कोई सिंह सा  डराता
 क्यों कोई भीगी  बिल्ली सा डरा 
डर के डर से न नजर  बचा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
यही रेखा बने धरा की भाग्य रेखा 
विश्व बने ऐसा जो ख्वाबों में देखा 
वामन के सब  अवतारों से 
सपनों के  सौदागारों  से 
मुक्त बने खलिहान यहाँ 
बस ऐसे हो बलवान यहाँ  
कि मंडी मुक्त  बाज़ार रहें 
मात्र ऐसे  कारोबार रहें 
जो कोई बोये बस वही बांटे 
न कोइ छीने न कोइ  छांटे 
सीधा सरल सा  संविधान सजा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
सीमाएं लहूलुहान न हों 
कहीं पे कोई  तूफ़ान न हों 
आंधियां हो ऐसी जो  उड़ा ले के जाए
कहीं पर   कुछ भी असंगत सा पाए
न चर्म-रंग किसी का किसी को गिराए 
न भुजबल यूं  ही  किसी को उठाये 
 मुक्त धरा हथियारों  से हो 
कूटनीति के  बाज़ारों से हो 
धरती का कहीं कोई  भी कोना  हो 
किसी को कभी न कुछ भी खोना  हो 
अनुपालन  का  प्रावधान पलवा   डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
     
या रेखा के भीतर अनदेखा लिखूँ क्या 
 शाश्वत सत्य का लेखा लिखूँ क्या 
लिख दूं बेमानी बेबसी  कारोबार 
लिख दूं बेमानी आसन -अत्याचार 
सर्व पर सर्वोच्चता बेमानी लिख दूं 
मानस के खोने  की कहानी लिख दूं 
लिख दूं इतिहास का फिर वो इतिहास 
ज़मीन दोज़ होता  विकसित  विकास 
या तितली के पांखों से  परिस्तान  सजा डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ
.
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 22, 2016 at 10:14am
आदरणीया अमिता जी बहुत ही सुन्दर मनोभाव।
काश हम दिल के अरमां सजा पाते,
जो सोचते हैं वही जहां बना पाते।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 9:59am

आदरनीया अमिता जी , मन की छटपटाहट को कविता मे अच्छे शब्द दिये हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 16, 2016 at 9:48pm
इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई आदरणीय ।
Comment by Samar kabeer on November 16, 2016 at 5:03pm
मोहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,बहुत ही भावपूर्ण कविता लिखी अपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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