For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -तब अलग थी, अब जवानी और है ( गिरिराज भंडारी )

ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास

तब अलग थी, अब जवानी और है

2122   2122    212  --

शक्ल में जिनकी कहानी और है

क्या उन्होनें मन मे ठानी और है

 

लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर

आज फिर क्यों निकला मअनी और है

 

हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये

तब अलग थी, अब जवानी और है

 

है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत

पर दबी अब सरगिरानी और है

 

साजिशें सारी पस ए परदा हुईं

पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है  

 

बात सारी दोस्ती की कर रहे  
पर अमल की कुछ बयानी और है

 

अब हक़ीकत है यहाँ बदली हुई

अब उधर की भी कहानी और है
******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 1375

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2016 at 5:38pm

इस ग़ज़ल पर काफी चर्चाएँ हो गई हैं, आ. गिरिराज भंडारी जी अब मेरी तरफ से बधाई आपको :-)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2016 at 5:34pm

आदरणीय राम बली भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2016 at 5:33pm

आदरनीय रवि भाई , आप ये बात दिल से निकाल दीजिये कि यहाँ कोई किसी को सिखा सकता है , ओबी ओ मे सभी एक दूसरे से सीखते हैं और अगर कहीं किसी ने गलती की है तो उसे गलत कहने का अधिकार सभी को है । बड़े भाई की हैसियत अलग बात है और सीखने के क्रम मे हुई गलती अलग बात है , मेरी उम्र  मुझे गलतियाँ करने का अधिकार नही दे तीं ।
आप साधिकार गलती बता सकते हैं , और मुझे भी उसे नम्रता से स्वीकार करना चाहिये , और सुधारने की कोशिश भी  करनी चाहिये ।

मेरे कहने का केवल ये अर्थ था कि , आप साफ नही बतायेंगे तो मै सुधारूँगा क्या ?

खैर .. आ. समर भाई जी की बात से  कुछ समजह मे आ गया कि कहाँ कमज़ोरी है ,  तदानुसार मै सुधार कर लूँगा । आभार आपका ।

Comment by रामबली गुप्ता on October 3, 2016 at 4:04pm
वाह वाह आद0 गिरिराज भाई जी इस बेहतरीन गजल के लिए शैर दर शैर बधाई लीजिये।
Comment by Ravi Shukla on October 3, 2016 at 2:47pm

आदरणीय समर साहब हक बयानी को कर्तव्‍य की वास्‍तविकता के अर्थ मे लिया जा सकता है तो इस शब्‍द से इत्‍तफाक हम भी रखते है 

Comment by Ravi Shukla on October 3, 2016 at 2:47pm

आदरणीय गिरिराज भाई जी आपसे सीख कर आपके शेर को गलत कहने की हिमाकत हम नहीं कर सकते हमारा मंतव्‍य केवल यह है कि कुछ बयानी के बाद रदीफ का 'और है' में कुछ शब्‍द सही प्रतीत नहीं हो रहा 

अब हक़ीकत है यहाँ बदली हुई

अब उधर की भी कहानी और है आपके इस शेर में काफिया जिस तहर खुद ब खुद अपने अर्थ के साथ्‍ा आ रहा है उस तरह कुछ बयानी में हमें महसूस नहीं हुआ इस लिये निवेदन किया था । आप से निरन्‍तर मिल रहे अग्रजवत स्‍नेह के कारण ही इतना कहने का साहस हुआ है । 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2016 at 7:11pm
आ गिरिराज जी सुंदर गजल के लिए आपको नमन है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 5:09pm

आदरणीय कालीपद भाई , हसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 5:08pm

आदरणीय समर भाई , आपा शुक्रिया , मै पहले मानी ही लिखने वाला था --- '' वक़्त कहता है कि मानी और है ''  सही शब्द लिखने के चक्क्रर मे  ऐसा किया था ।
आज ये लगता है मानी और है
वक़्त कहता है कि मानी और है       ---  दोनो मे से कोई एक रख लूँगा ,  मानी शब्द  आज चलन मे है , और इसक उपयोग इस मंच म्मे पहले भी हो चुका है , इसलिये मै कोई कमी महसूस नही करता ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 4:43pm

आ गिरीराज जी, बहुत खुबसूरत ग़ज़ल के लिए  हार्दिक बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service