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तीन क्षणिकाएँ

क्षणिका .. १

सूखी पीली झाड़ी सरीखा बाँझ रिश्ता

अँधियाले भरी सांझ में मानो कोई घायल पक्षी

वेदनाओं की नीली गुत्थियाँ खोले

 

क्षणिका .. २

कुम्हलाए साँवले रिश्ते के उदास बगीचे में

सुनता हूँ, "स्नेह अभी भी है"

पर अनस्तित्व को अस्तित्व देती

उस स्नेह में अब मीठी चाशनी नहीं है

क्षणिका .. ३

गहरे अकेले प्रश्नों से बिम्बित

पुराना वेदनामय अस्तित्व ...

बहती है अभी भी रुधिर कोषों में

किसी के प्रति अपरिगणित

सूक्ष्मतम संवेदनाएँँ

मजबूरियों से समझौता करती

असंभव हुई मृत संभावनाएँ

राख में कहीं कुछ बाकी है क्या?

               -----------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 1:56pm

आदरणीय आशुतोष जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 1:54pm

आदरणीय विजय शंकर जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on September 5, 2016 at 5:51am

आदरणीय गोपाल नारायन जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2016 at 4:12pm

आदरणीय निकोर सर ..इन सुंदर छानिकाओं के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 23, 2016 at 11:45pm
सूखी पीली झाड़ी सरीखा बाँझ रिश्ता
बहुत खूब , बधाई, आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2016 at 8:26pm

अप्रतिम , आ० निकोर जी . इन क्षणिकाओं में भी वेदना की वही धार है  वही पछतावा वही प्रायश्चित . सादर .

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